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________________ नामकरण संस्कार विधि का प्रचलित स्वरूप ... 127 लिए उत्तम माना है। 10 इस प्रकार भिन्न-भिन्न तिथियों का निर्देश है। आशय इतना है कि वैदिक मत में इस संस्कार हेतु शुभ तिथि आदि को निर्विवादतः स्वीकारा गया है। नामकरण संस्कार हेतु वर्णित सुयोग्य काल यह संस्कार किस दिन किया जाना चाहिए, इस सम्बन्ध में तीनों परम्पराओं का भिन्न-भिन्न मत है। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार यह संस्कार शुचि कर्म के दिन अथवा उसके दूसरे या तीसरे दिन में अथवा किसी शुभ दिन में शिशु का चंद्रबल देखकर किया जाना चाहिए। 11 दिगम्बर परम्परा के मतानुसार जन्मदिन से बारह दिन के बाद 12 अथवा जन्म के बारहवें, सोलहवें या बत्तीसवें दिन में यह संस्कार करना चाहिए | 13 वैदिक परम्परा में इस विषयक विभिन्न मत प्राप्त होते हैं। गृह्यसूत्रों के नियमानुसार नामकरण संस्कार शिशु के जन्म के बाद दसवें या बारहवें दिन सम्पन्न किया जाना चाहिए। 14 इसका एक अपवाद नियम भी मिलता है वह था गुह्यनाम जो कुछ आचार्यों के मत से जन्म के दिन रखा जाता है। परवर्तीकालीन ग्रन्थों के अनुसार यह संस्कार जन्म से दसवें दिन से लेकर द्वितीय वर्ष के प्रथम दिन तक सम्पन्न किया जा सकता है । किन्हीं मतानुसार नामकरण संस्कार दसवें, बारहवें, सौवें दिन या प्रथम वर्ष के समाप्त होने पर करना चाहिए। 15 इस व्यापक विकल्प का कारण पारिवारिक सुविधा या माता और शिशु का स्वास्थ्य हो सकता है। बृहस्पति के मतानुसार जन्म से दसवें, बारहवें, तेरहवें, सोलहवें, उन्नीसवें या बत्तीसवें दिन सम्पन्न करना चाहिए। इसी प्रकार बौधायन, पारस्कर और भारद्वाज ने दसवाँ, याज्ञवल्क्य ने ग्यारहवाँ, हिरण्यकेशि ने बारहवाँ दिन इस संस्कार के लिए योग्य माना है। 16 संक्षेप में इतना कह सकते हैं कि गुह्यनाम के विकल्प को छोड़कर जन्म के बाद दसवें दिन से लेकर द्वितीय वर्ष के प्रथम दिन तक यह संस्कार यथासुविधा एवं यथा शुभ दिन कभी भी किया जा सकता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार संक्रान्ति, ग्रहण या श्राद्ध के दिनों में यह संस्कार कदापि नहीं किया जाना चाहिए। वैदिक परम्परा में आजकल यह संस्कार जन्म के बारहवें दिन बिना किसी वैदिक मन्त्रोच्चारण के कर लेते हैं। उसमें स्त्रियाँ एकत्र होती हैं और पुरुषों से परामर्श कर नाम घोषित कर देती हैं -
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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