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________________ 126...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन रहे, वह स्वयं नामानुरूप गुणों को उपलब्ध करता रहे। यदि नाम का महत्त्व न हो और सामाजिक जीवन में उसका मूल्य न हो तो अपशब्द सुनकर किसी को अप्रसन्नता और अच्छे शब्द सुनकर किसी को प्रसन्नता नहीं होनी चाहिए, किन्तु ऐसा होता नहीं है। नामकरण इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए। बच्चों के नाम ऐसे रखने चाहिए, जिससे समाज में उनका गौरव, साहस एवं स्तर ऊँचा उठता हो। लाड़-प्यार में भी गोलु-पीलु आदि नाम नहीं रखना चाहिए अन्यथा बच्चों की कोमल मनोभूमि पर उसका बुरा प्रभाव पड़ता है। विश्व बन्धुत्व की भावना यह कहती है कि हर आत्मा का सम्मान होना चाहिए, भले ही वह अभी छोटे बालक के शरीर में ही क्यों न हो। उक्त वर्णन से यह निर्णीत होता है कि नामकरण का मुख्य प्रयोजन सामाजिकता एवं संघीय सदस्यता से भी है। नामकरण संस्कार करने का अधिकारी श्वेताम्बर आम्नाय में जैन ब्राह्मण या क्षुल्लक को इस संस्कार का अधिकार दिया गया है। दिगम्बर परम्परा में इस संस्कार का अधिकारी पूर्व निर्दिष्ट ब्राह्मण को माना गया है। वैदिक मत में इस संस्कार का कर्ता पिता एवं ब्राह्मण दोनों को स्वीकार किया गया है। नामकरण संस्कार के लिए मुहूर्त्तादि का विचार वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में इस संस्कार के लिए शुभ नक्षत्र एवं शुभ वार आदि का निर्देश इस प्रकार है- मृद, ध्रुव, क्षिप्र एवं चर संज्ञा वाले नक्षत्रों में बालक का नामकरण करना चाहिए अथवा गुरु या शुक्र चतुर्थ स्थान में हो उस समय नाम संस्कार करना चाहिए। दिगम्बर परम्परामूलक आदिपुराण में शुभ नक्षत्र आदि के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं है। वैदिक परम्परा इस संस्कार के लिए शुभ तिथि आदि को स्वीकार करती है, किन्तु वैदिक विद्वानों में इस सम्बन्ध में मतैक्य नहीं है। उनके प्राचीन ग्रन्थों, सूत्रों एवं स्मृतियों में अनेक तिथियों की चर्चा है। गोभिल एवं खादिर के अनुसार सोष्यन्तीकर्म में नाम रखना चाहिए। बृहदारण्यकोपनिषद्, आश्वलायन, शंखायन आदि के मतानुसार जन्म के दिन नाम रखा जाना चाहिए। मनुस्मृति (2/30) के मत से दसवीं, बारहवीं, अठारहवीं कोई शुभ तिथि के दिन नामकरण करना चाहिए। भविष्यत्पुराण ने दसवीं, बारहवीं, अठारहवीं या एक मास के उपरान्त की तिथि को नामकरण के
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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