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________________ षष्ठी संस्कार विधि का व्यावहारिक स्वरूप ...111 था। उस समय यह संस्कार किस रूप में और किस प्रकार सम्पन्न किया जाता था, इस विषय में कोई विवरण पढ़ने को नहीं मिलता है। षष्ठी संस्कार की क्या विधि थी? यह भी अज्ञात है, परन्तु पन्द्रहवीं शती तक आते-आते इस संस्कार का कायाकल्प ही बदल गया हो ऐसा प्रतीत होता है। आचारदिनकर में षष्ठी संस्कार विधि समुचित एवं विस्तृत रूप में देखने को मिलती है। इस संस्कार विधि का मुख्य प्रयोजन अनिष्ट शक्तियों का निवारण करना एवं अभीप्सित कार्य की पूर्ति करना रहा है। इस संस्कार के अन्य प्रयोजन कुल परम्परा का निर्वहन करना, कुल देवियों को सन्तुष्ट रखना, कुल माताओं को शिशु रक्षणार्थ जागृत रखना, कुल माताओं की महिमा को बढ़ाते रहना इत्यादि भी माने जा सकते है। ___ वस्तुत: यह संस्कार पारिवारिक, लौकिक एवं व्यावहारिक जीवन को सुखी-सम्पन्न बनाए रखने के लिए अति उपयोगी एवं लाभदायी है। सुखीसम्पन्न एवं प्रसन्नचित्त रहना गृहस्थ धर्म का आवश्यक गुण माना गया है। यही कारण है कि इस संस्कार को धर्म संस्कार की कोटि में रखा गया है। सन्दर्भ-सूची 1. आचारदिनकर, पृ. 12-13 2. धर्मशास्त्र का इतिहास, पृ. 186 3. वही, पृ. 187 4. संस्कारअंक, जनवरी सन् 2006, पृ. 293-296 5. आचारदिनकर, पृ. 12 6. वही, पृ. 12-13 7. वही, पृ. 13 8. ज्ञाताधर्मकथासूत्र, अंगसुत्ताणि, 1/81 9. औपपातिकसूत्र, मधुकरमुनि, सू. 106 10. राजप्रश्नीयसूत्र, मधुकरमुनि, सू. 280 11. कल्पसूत्र, 101
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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