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________________ 94... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन सूर्य-चन्द्र दर्शन संस्कार का तुलनात्मक चिन्तन जब हम श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक परम्परा में मान्य पूर्वोक्त संस्कारों का तुलनात्मक विवेचन करते हैं तो परस्पर कई प्रकार की समानताएँ और असमानताएँ विभिन्न अपेक्षाओं से दृष्टिगत होती हैं क्रम की अपेक्षा - श्वेताम्बर, दिगम्बर और वैदिक तीनों परम्पराओं में किसी न किसी रूप में सूर्य-चन्द्र के दर्शन कराने सम्बन्धी परम्परा को मान्यता मिली है, परन्तु क्रम की दृष्टि से विचार करें तो श्वेताम्बर में सूर्य-चन्द्र-दर्शन संस्कार का स्थान चौथा है, जबकि दिगम्बर में आठवाँ एवं वैदिक-धर्म में सातवाँ स्थान है। नाम की अपेक्षा - उक्त परम्पराओं में बालक को प्रथम बार बाहरी दुनिया से परिचित करवाने हेतु जो संस्कार किए जाते हैं उनके नामों को लेकर अन्तर देखा जाता है। श्वेताम्बर में यह 'सूर्येन्दुदर्शन' के नाम से कहा जाता है, दिगम्बर परम्परा में 'बहिर्यान' के नाम से प्रचलित है तथा वैदिक परम्परा में 'निष्क्रमण' के नाम से स्वीकृत है। वस्तुतः ये तीनों संस्कार नाम की दृष्टि से भिन्न होने पर भी अर्थ की दृष्टि से समानता रखते हैं। , अधिकारी की अपेक्षा - श्वेताम्बर परम्परा में इस संस्कार को करवाने का योग्यधिकारी जैन ब्राह्मण या क्षुल्लक को माना गया है। दिगम्बर परम्परा में गुण सम्पन्न द्विज को इसका अधिकारी बतलाया गया है तथा वैदिक-धर्म में शिशु के पिता या उसके मामा को इस संस्कार का अधिकार दिया गया है। काल की अपेक्षा - श्वेताम्बर परम्परा में यह संस्कार जन्म से तीसरे दिन किया जाता है। दिगम्बर परम्परा में दूसरे से लेकर चौथे महीने के बाद किसी भी शुभ दिन में किए जाने का निर्देश है तथा वैदिक परम्परा में, इस संस्कार का काल बारहवें दिन से लेकर चार मास तक माना गया है। विधि की अपेक्षा - श्वेताम्बर परम्परा में इस संस्कार के समय माता एवं शिशु को मन्त्र पूर्वक सूर्य और चन्द्र के दर्शन करवाए जाते हैं। गृहस्थ गुरु उस दिन जिनप्रतिमा की स्नात्रपूजा करता है, उसके सम्मुख सूर्य एवं चन्द्र का आकार बनाकर रखता है तथा क्रिया विधि पूर्ण होने के बाद स्थापित सूर्य-चन्द्र का विसर्जन किया जाता है । इस प्रकार इस संस्कार के सभी कृत्य सूर्य-चन्द्र दर्शन से ही सम्बन्धित होते हैं।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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