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सूर्य-चन्द्र दर्शन संस्कार विधि ...93 सूर्य की किरणें प्राण संचारक मानी गईं हैं। संसार की सजीवता इसी के कारण है। वनस्पति, जीव- जन्तु, कीट-पतंग आदि विविध प्रकार के जीव सूर्य से प्राप्त होने वाली प्राण शक्ति के कारण ही सजीव हैं अत: सूर्य-दर्शन करते हुए बालक के प्राणवान रहने एवं उसके सजीव बने रहने की आकांक्षा की जा सकती है। - सूर्य-चन्द्र की एक विशेषता यह है कि ये अकेले परिभ्रमण नहीं करते, अपितु परिवार के सारे ग्रहों और उपग्रहों को साथ लेकर चलते हैं। सबको अपनी आकर्षण शक्ति से बांधे रखते हैं, सबको गति देते हैं, उसी प्रकार यह बालक अपनी शक्ति-सामर्थ्य से परिवार को साथ लेकर चले, सबके कल्याण और उत्थान की बात सोचे। ____ इस तरह सूर्य-चन्द्र दर्शन की प्रक्रिया के पीछे ऐसी अनेक शिक्षाएँ समाविष्ट हैं, जो बालक के जीवन में विकास को सुनिश्चित करती हैं और उनके गुणों को गुणान्तरित करती है। इसी उद्देश्य की सम्पूर्ति हेतु सूर्य-चन्द्र का दर्शन करवाया जाता है। बहिर्यान या निष्क्रमण संस्कार से होने वाले लाभ
__ बालक के जन्म लेने के बाद उसे कम-से-कम तीन चार महीनों तक घर के वातावरण में ही रखा जाता है। निष्क्रमण संस्कार के द्वारा प्रथम बार उसे बाह्य प्राकृतिक वातावरण के सम्पर्क में लाया जाता है। बालक पर इसका प्रभाव विविध दृष्टियों से देखा जाता है।
इस संस्कार से बालक का मानसिक विकास होता है। उसमें बाह्य जगत को जानने के लिए बौद्धिक स्फुरणा पैदा होती है। वह घर से लेकर ननिहाल तक अपना सामाजिक दायरा बढ़ाता है। इस प्रकार इस संस्कार द्वारा शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक आदि अनेकश: लाभ प्राप्त होते हैं।25 ____यदि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस संस्कार का मूल्यांकन करें तो किसी अपेक्षा से इस संस्कार के प्रयोजन एवं उसकी अर्थवत्ता निरर्थक सिद्ध होती है, क्योंकि आजकल अधिकांश बच्चों का जन्म हॉस्पीटल में होता है माताएँ नवजात बच्चे को साथ लेकर समुद्र तट, होटल, सिनेमाघर एवं देश-विदेश की यात्रा आदि पर भी ले जाती हैं। घर के वातावरण में सुरक्षित रखने की भावना नहींवत रह गई है। एकल परिवार संस्कृति भी इसका एक मुख्य कारण है।