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92... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
मन्त्रों का प्रयोग किया जाता हैं, उसका बुद्धि एवं आत्मा पर भी स्वाभाविक रूप से अच्छे परिणाम होते हैं। इन्हीं सब कारणों को दृष्टि में रखते हु प्रत्येक संस्कार के समय मन्त्रोच्चार किया जाना लाभकारी है। 24
ब्राह्मणों को भोजन दान क्यों ? वैदिक मान्यतानुसार इस संस्कार को सम्पन्न करते समय ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है एवं उनकी पूजा पूर्वक यह विधि पूर्ण की जाती हैं। इस विषय में यह भी कह सकते हैं कि वह नन्हासा बालक सर्वप्रथम अपने घर की चौखट के बाहर ज्यों ही बाहरी दुनिया के सम्पर्क में आता है, त्यों ही अपनी पारिवारिक सम्पदा को लोगों के बीच बाँटता है। इसके द्वारा चार माह के बच्चे में सम्पूर्ण संसार की कौटुम्बिक भावना को दर्शाया जाता है तथा एक समतामूलक सामाजिक सरंचना की कल्पना शिशु के माध्यम से की जाती है। ब्राह्मण को भोजन करवाने का यही प्रयोजन सिद्ध होता है।
सूर्य-चन्द्र का ही दर्शन क्यों ? श्रीराम शर्मा आचार्य का कहना है कि सूर्य निरन्तरता, गतिशीलता, तेज प्रकाश एवं उष्णता का प्रतीक है। उसकी किरणें इस संसार में जीवन संचार करती हैं, अतएव बालक में भी इन गुणों का विकास हो। सूर्य निरन्तर चलता रहता है, वह अपने कर्तव्यों से एक क्षण के लिए भी विमुख नहीं होता, उसी तरह यह बालक भी निरन्तर पारिवारिक एवं सामाजिक कर्तव्यों का निर्वहन करता रहे। सूर्य एवं चन्द्र दर्शन के साथ - साथ बालक को यह शिक्षा दी जाती हैं कि उसे भावी जीवन में आलसी, ढीला - पोला या अनियमित नहीं होना है अतः वह सूर्य को देखे और उसकी रीति-नीति का अनुसरण करे।
सूर्य प्रकाशवान एवं तेजस्वी होता है तथा चन्द्रमा सौम्य एवं शीतल होता है, उसका दर्शन करने वाला बालक भी तेजस्वी एवं शीतल स्वभावी बने ।
सूर्य में गर्मी होती है। हमारी नस-नाड़ियों में भी गरम रक्त बहता रहे, हमारे हौसले बढ़ते रहें। यह संस्कार प्रेरणा देता है कि परिस्थितियाँ भले ही प्रतिकूल हों पर हमें आदर्शो की रक्षा के लिए गरम ( तत्पर) ही रहना चाहिए। जिस प्रकार सूर्य स्वयं गरम रहता है, दूसरों को भी गरम रखता है । वैसे ही इस संस्कार के माध्यम से बालक स्वयं सक्रिय रहे और दूसरों को भी गतिशील बनाए रखे यह अभिसिप्त है।