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________________ सूर्य-चन्द्र दर्शन संस्कार विधि ...91 थी, अत: जन्म के बहुत दिनों बाद तक उसे घर की चारदीवारी के अन्दर ही रखा जाता था और उसकी सुरक्षा के अनेकानेक प्रबन्ध किए जाते थे। यह इस संस्कार पर दृष्टि देने से ज्ञात होता है।23 श्वेताम्बर परम्परा में तीसरे दिन ही सूर्य-चन्द्र दर्शन करवाने का जो निर्देश है, उसका रहस्य मार्मिक है। जैन आगम ग्रन्थों में भी 'तइए दिवसे चंदसूरदसणयं करिति' का ही उल्लेख है। ___ मन्त्र जाप एवं मंत्रोच्चारण का प्रयोग क्यों? यह संस्कार सम्पादित करते समय किसी न किसी रूप में मंत्रोच्चारण निश्चित रूप से किए जाते हैं। इसके कुछ कारण ये हैं-सर्वप्रथम भारतीय संस्कृति तंत्र-मंत्र पर कुछ अधिक विश्वास करने वाली संस्कृति है। फलत: किसी भी मांगलिक अवसर पर मन्त्रोच्चार का होना नितान्त ही स्वाभाविक है। इस मन्त्रोच्चार के पीछे केवल परम्परा को स्वीकारना ही पर्याप्त नहीं है, इसमें और भी तथ्य दृष्टिगोचर होते हैं। मंत्रों का वर्ण-संयोजन, उसका क्रम-निर्धारण एवं उसकी ध्वनियाँ सामान्य और लौकिक वाक्य से भिन्न हुआ करती हैं। मन्त्रों का सम्बन्ध मनोवैज्ञानिक तथा चिकित्साशास्त्रीय तथ्यों से भी है। आज के विकसित युग में हम देखते हैं कि मनोवैज्ञानिक चिकित्सा का क्षेत्र मानसिक एवं शारीरिक रोगाकुल जगत में व्यापक होता जा रहा है। दुःसाध्य रोगों का इलाज भी इस पद्धति के द्वारा आसानी से संभव हो रहा है। जहाँ औषधियों का प्रयोग सफल नहीं होता है, वहाँ मनोवैज्ञानिक चिकित्सा द्वारा रोग विनिर्मुक्ति होने लगी है। __ मन्त्र ध्वनि भी एक ऐसी तरंग है, जो कर्णेन्द्रिय द्वारा शरीर के अन्दर संस्पर्श से प्रभावित करती है तथा उस प्रकार की क्रियाओं में गति प्रदान करती है। कुछ मन्त्रों का प्रयोग अमुक-अमुक समय में ही किया जाता है। यदि मन्त्रों का उच्चार असमय में किया जाए तो हानिकारक परिणाम भी उपस्थित हो सकते हैं। जिस प्रकार गहरी निद्रा में सोए हुए व्यक्ति को उच्च स्वर द्वारा प्रबोधित करने से उसके मन-मस्तिष्क पर गलत प्रभाव पड़ता है, वह पागल भी हो सकता है। इसी तरह मन्त्रोच्चार का दार्शनिक-स्वरूप भी बहुत ही रहस्यमय है, जिसके अन्तर्गत निश्चित शब्दों द्वारा, निश्चित समय एवं निश्चित शैली में
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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