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________________ सूर्य-चन्द्र दर्शन संस्कार विधि ...95 दिगम्बर परम्परा में इस संस्कार के समय द्विज द्वारा शिशु को मन्त्र पूर्वक आशीर्वाद दिया जाता है तथा जिनालय के दर्शन करवाकर उसके दीर्घायुष्य की प्रार्थना की जाती है। वैदिक परम्परा में संस्कार किए जा रहे बालक को कुलदेवता का दर्शन करवाना, लोकपाल आदि देवों की स्तुति करना, शुभ मन्त्रों का उच्चारण करना, शिशु को देवालय में ले जाना इत्यादि क्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं। उपसंहार ___ यदि हम इस संस्कार पर गहराई से विचार करते हैं, तो अनेक मौलिकतत्त्व सामने आते हैं। साथ ही इस संस्कार की फलश्रुति क्या है ? इसका बोध भी भलीभाँति हो जाता है। निष्क्रमण संस्कार लोकाचार की सत्प्रवृत्ति का परिचायक है। यह नवजात शिशु को घर से बाहर ले जाने का संस्कार है। इसका अभिप्राय बच्चे को असत् के गर्भ से सत् के प्रकाश में लाना है। विद्वानों ने इस संस्कार का फल आय की वृद्धि बताया है। इसके पीछे मुख्य कारण सूर्य एवं चन्द्रादि देवताओं का पूजन करना तथा बालक के पिता द्वारा पंचभूतों के अधिष्ठाता देवताओं से बालक के कल्याण की कामना करना रहा है। पूर्व काल में इस संस्कार के समय बालक को अपने बड़ों का आशीर्वाद मिला करता था- 'जीवेद् शरदः शतम्। अब इस संस्कार का महत्त्व इसलिए घट गया है, क्योंकि अधिकतर बालकों का जन्म प्राय: घर के बाहर ही होता है। सुस्पष्ट है कि यह संस्कार बालक की सुषुप्त शक्तियों को जागृत करने, शिशु को बाहर की दुनिया का यथार्थ परिचय कराने एवं सामाजिक प्राणी होने का बोध करने के निमित्त किया जाता है। सन्दर्भ सूची 1. हिन्दूसंस्कार, पृ. 110 2. आचारदिनकर, भाग-1, पृ. 11 3. आदिपुराण 4. हिन्दूसंस्कार, पृ. 112 5. वीरमित्रोदयसंस्कार, भाग-1, पृ. 253 6. धर्मशास्त्र का इतिहास, भा. 1., पृ. 182 N
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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