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________________ जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन ...xiii रात्रि जागरण का ही उल्लेख है। जब हम इन संस्कारों के सम्बन्ध में विशेष रूप से चिन्तन करते हैं तो ऐसा लगता है कि गर्भाधान से लेकर चूड़ाकरण तक के सभी संस्कार व्यक्ति के बाल्यकाल से ही सम्बन्धित है। किसी सीमा तक उपनयन और विद्यारंभ भी बाल्यकाल अथवा किशोरावस्था से संबंधित माने जा सकते हैं। शेष संस्कारों में विवाह संस्कार यौवनावस्था से और व्रतारोपण संस्कार प्रौढ़ अवस्था से तथा अन्त्य संस्कार वृद्धावस्था से सम्बन्धित प्रतीत होते हैं। हम देखते हैं कि इन संस्कारों में अधिकांश संस्कार बाल्यावस्था से सम्बन्धित माने गए हैं। उसका मुख्य कारण यह है कि व्यक्ति के व्यक्तित्व को विकसित एवं संस्कारित करने के लिए बाल्यकाल में ही संस्कारों की महत्ती आवश्यकता होती है। फिर भी यह ध्यान रखना आवश्यक है कि भारतीय समाज में संस्कारों का जिस रूप में प्रचलन है उससे यही फलित होता है कि हमने संस्कारों को मात्र कर्मकांड ही मान लिया है। उसके पीछे निहित व्यक्तित्व के विकास का मूल सिद्धान्त कहीं गौण हो चुके हैं। ___ आज हम विज्ञान के युग में जी रहे हैं अत: संस्कार सम्बन्धी विधि-विधानों का वैज्ञानिक आधार पर मूल्यांकन करना अपेक्षित है। इन कर्मकाण्डों का वैज्ञानिक दृष्टि से समीक्षण करना इसलिए आवश्यक है कि उनकी उपयोगिता को सिद्ध किया जा सके। यद्यपि प्रस्तुत कृति में संस्कारों की वैज्ञानिकता को अन्य ग्रन्थों के आधार पर रेखांकित करने का प्रयत्न किया गया है, किन्तु यह पर्याप्त नहीं है, हमें प्रत्येक संस्कार को और उसके विधि-विधान को वैज्ञानिक कसौटी पर कसना होगा तथा उसी आधार पर उनके हानि-लाभ का मूल्यांकन और प्रस्तुतीकरण भी करना होगा। यह सत्य है कि प्राचीनकाल में इन संस्कारों के कुछ वैज्ञानिक आधार रहे हों, किन्तु उस युग की अपेक्षा आज विज्ञान का क्षेत्र अति व्यापक हो चुका है और वह किसी भी तथ्य की गहराई में जाकर उसके औचित्य-अनौचित्य का विश्लेषण प्रस्तुत कर सकता है। यद्यपि संस्कारों की वैज्ञानिकता से सम्बन्धित कुछ संकेत श्री रामशर्मा आदि कुछ विद्वानों ने किए हैं लेकिन उनका वैज्ञानिक परीक्षण अभी भी अपेक्षित है। यह संतोष का विषय है कि साध्वी सौम्यगुणाश्रीजी ने जैन गृहस्थ के संस्कारों को लेकर प्रस्तुत कृति में आचार दिनकर एवं अन्य कुछ ग्रन्थों के आधार पर विस्तृत विवेचनाएँ प्रस्तुत की है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि प्रस्तुत कृति में व्रतारोपण संस्कार का मात्र संक्षेप में उल्लेख है। इसका विस्तृत वर्णन उन्होंने
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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