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________________ xiv... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन व्रतारोपण नाम की अन्य कृति में किया है। प्रस्तुत विवेचन में साध्वीजी ने आचारदिनकर को आधारभूत मानकर यह चर्चा की है। यद्यपि ग्रन्थ प्रणयन में दिगम्बर परम्परा और हिन्दू परम्परा के अन्य ग्रन्थों को भी आधार बनाया गया है। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि जैन परम्परा में संस्कारों के विवेचन की दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ होगा। प्रस्तुत कृति की यह विशेषता है कि इसमें प्रत्येक संस्कार की आवश्यकता एवं उसकी अर्थवत्ता पर विचार किया गया है। उसमें संस्कार सम्बन्धी विधि-विधानों के मूल्यांकन और तुलनात्मक विवेचन को अधिक स्थान प्राप्त है, जो इस कृति की मूल्यवत्ता को स्थापित करता है। प्रस्तुत कृति का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि श्वेताम्बर जैन परम्परा में आज इनमें से अधिकांश संस्कार किए तो जाते हैं, किन्तु उन सबका आधार ब्राह्मण परम्परा ही होती है, क्योंकि इन संस्कारों का कर्ता ब्राह्मण ही होता है और वह अपनी परम्परा के आधार पर ही इन्हें संपन्न करवाता है। श्वेताम्बर परम्परा में इन संस्कारों से सम्बन्धित एक मात्र ग्रन्थ आचार दिनकर ही है, किन्तु वह ग्रन्थ प्रचलन में नहीं रहने से गृहस्थ के संस्कारों के सम्बन्ध में आज ब्राह्मण परम्परा का ही वर्चस्व हो गया है यद्यपि दिगम्बर परम्परा में विवाह आदि संस्कार जैन पंडितों के द्वारा करवाए जाते हैं, लेकिन श्वेताम्बर परम्परा में यह प्रचलन नहीं है। ____संभवत: यह कृति श्वेताम्बर परम्परा में एक नवजागरण प्रस्तुत करेगी और वे भी अपनी परम्परा के अनुसार इन संस्कारों को संपन्न कर पायेंगे। अन्त में यही अपेक्षा है कि साध्वी सौम्यगुणा श्रीजी भविष्य में भी इसी प्रकार की मूल्यवान कृतियों का लेखन करते हुए जिनशासन की सेवा करती रहें। प्रो.सागरमल जैन प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर(म.प्र.)
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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