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________________ 88...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन हो जाने पर माता और शिशु को चन्द्र के सम्मुख ले जाए और वेद मंत्र का उच्चारण करते हुए चन्द्र के प्रत्यक्ष दर्शन करवाए। चन्द्र दर्शन का मन्त्र यह है___ “अहँ चन्द्रोऽसि, निशाकरोऽसि, सुधाकरोऽसि, चन्द्रमाअसि, ग्रहपतिरसि, नक्षत्रपतिरसि, कौमुदीपतिरसि, निशापतिरसि, मदनमित्ररसि, जगज्जीवनमसि, जैवातृकोऽसि, औषधिगर्भोऽसि, वंद्योऽसि, पूज्योऽसि, नमस्ते भगवन् अस्य कुलस्य, ऋद्धिं कुरू, वृद्धिं कुरू, तुष्टिं कुरू, पुष्टिं कुरू जयं विजयं कुरू भद्रं कुरू, प्रमोदं कुरू श्री शशांकाय नम: अहँ ।” • चन्द्र का दर्शन करने के बाद माता गुरु को नमन करे। गुरु आशीर्वाद प्रदान करे। उसके पश्चात वह गृहस्थ गुरु जिनप्रतिमा और चन्द्र प्रतिमा-दोनों को विसर्जित करे। इस संस्कार के सम्बन्ध में इतना विशेष है कि यदि उस दिन चतुर्दशी या अमावस्या हो अथवा आकाश बादलों से आच्छादित होने के कारण चन्द्र दर्शन न हो पाया हो, तो भी पूजन उसी सन्ध्या में करना चाहिए। चन्द्र दर्शन चन्द्रमा के उदय होने पर अन्य रात्रि में भी किया जा सकता है। बहिर्यान संस्कार विधि दिगम्बर- दिगम्बर परम्परा के आदिपुराण में सूर्य-चन्द्र दर्शन करवाने सम्बन्धी कोई चर्चा नहीं है, केवल जन्मोत्सव (प्रियोद्भव) संस्कार के समय तीसरे दिन रात को 'अनन्तज्ञानदर्शीभव'-यह मन्त्र पढ़कर नवजात शिशु को गोदी में उठाकर तारों से सुशोभित आकाश का दर्शन करवाना चाहिए16-ऐसा उल्लेख मिलता है। इस प्रक्रिया को किसी अपेक्षा से चन्द्र दर्शन विधि के अन्तर्गत रख सकते हैं किन्तु मूलत: सूर्य-चन्द्र दर्शन का कोई निर्देश नहीं है। जिस बहिर्यान संस्कार को सूर्य-चन्द्र दर्शन के समकक्ष माना गया है, उस संस्कार विधि का वर्णन करते हुए यह कहा गया है कि द्विज को निम्न मन्त्रों का जाप करना चाहिए और इन मन्त्रों को बोलते हुए शिशु को आशीर्वाद देना चाहिए तथा अरिहन्त परमात्मा की पूजा आदि शेष विधि पूर्ववत जाननी चाहिए।17 आशीर्वाद मन्त्र इस प्रकार है “उपनयनिष्क्रान्तिभागी भव, वैवाह निष्क्रान्तिभागीभव, मुनीन्द्रनिष्क्रान्तिभागीभव, सुरेन्द्रनिष्क्रान्तिभागीभव, मन्दराभिषेक निष्क्रान्ति- भागीभव यौवराजयनिष्क्रान्तिभागीभव, महाराज्य निष्क्रान्तिभागीभव।"
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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