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________________ जातकर्म - संस्कार - विधि... 79 संस्कार डाले जाते हैं, उनका बालक पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इस समय गर्भ शिक्षण योग्य होता है। अभिमन्यु को चक्रव्यूह - प्रवेश का उपदेश इसी समय मिला था। यह संस्कार गर्भिणी स्त्री के मन को सन्तुष्ट करने तथा उसके शरीर के आरोग्य और गर्भ की स्थिरता के निमित्त किया जाता है। इस संस्कार में पति गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की कामना करते हुए गुलर आदि वनस्पति द्वारा पत्नी के सीमन्त (मांग) और बालों को संवारता है। सौभाग्यवती, वृद्धा एवं कुलीन स्त्रियाँ गर्भिणी को आशीर्वाद देती हैं। इस अवसर पर खिचड़ी खाने का रिवाज है। ध्यातव्य है कि पूर्व काल में यह संस्कार जातकर्म सम्बन्धी वेद मन्त्रों के उच्चारण के साथ सम्पन्न होता था। आजकल प्रसव जन्य क्रियाएँ अस्पतालों या प्रसूति गृहों मे होने लगा हैं अतः इसकी उपयोगिता न्यून हो गई है। विविध परम्पराओं में प्रचलित जन्म संस्कार का तुलनात्मक विवेचन जब हम जन्म-संस्कार से सम्बन्धित विधि का तुलनात्मक विवेचन करते हैं, तो तीनों परम्पराओं में कहीं भिन्नता के, तो कहीं समरूपता के दर्शन होते हैं जो इस प्रकार हैं • श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक- तीनों परम्पराओं में जन्म संस्कार को माना गया है, किन्तु क्रम की दृष्टि से अन्तर है। श्वेताम्बर में जन्म संस्कार का तीसरा स्थान है, जबकि दिगम्बर में छठवां और वैदिक धर्म में चौथा स्थान है। • श्वेताम्बर आदि परम्पराओं में जन्म संस्कार सम्बन्धी नामों को लेकर भी अन्तर है। श्वेताम्बर परम्परा में यह 'जन्म संस्कार' के नाम से प्रचलित है। दिगम्बर परम्परा में ‘प्रियोद्भव संस्कार' के नाम से प्रसिद्ध है तथा वैदिक मत में 'जातकर्म' के नाम से जाना जाता है। ये तीनों संस्कार शाब्दिक दृष्टि से भिन्न होने पर भी अर्थ की दृष्टि से समान हैं। • श्वेताम्बर परम्परा में इस संस्कार को करवाने का अधिकार जैन ब्राह्मण या क्षुल्लक को दिया गया है, दिगम्बर परम्परा में इसका अधिकारी द्विज को कहा गया है, जबकि वैदिक-मत में ब्राह्मण के साथ-साथ शिशु का पिता ही इस संस्कार के योग्य माना गया है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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