SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 80...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन • श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं वैदिक इन तीनों परम्पराओं में लगभग पुत्र जन्म के अवसर पर या तुरन्त बाद यह संस्कार सम्पन्न किया जाता है। . श्वेताम्बर-परम्परा में इस संस्कार विधि के अन्तर्गत नवजात शिशु को अभिमन्त्रित जल द्वारा स्नान करवाना, कुल-वृद्धाओं के द्वारा रक्षा पोटली बंधवाना, ज्योतिष द्वारा लग्न निलवाना तथा गुरु एवं ज्योतिषी को यथायोग्य दान देना इत्यादि कृत्य प्रमुख रूप से किए जाते हैं, अर्हत् पूजन या गुरु दर्शन आदि क्रियाएँ नहींवत की जाती हैं, जबकि दिगम्बर परम्परा में यह संस्कार अरिहंत परमात्मा के स्मरण पूर्वक, हवन, आशीर्वाद आदि विविध विधिविधानों के साथ सम्पन्न किया जाता है। वैदिक-परम्परा में यह संस्कार विधि अनेक रूपों में की जाती है और उन विधियों का उद्देश्य बालक का दैहिक, मानसिक और बौद्धिक-विकास होना ही स्वीकारा गया है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि तीनों परम्पराओं में यह संस्कार शिशु की सुरक्षा और प्रसवजन्य अशुचि को दूर करने के निमित्त ही किया जाता है, तथापि वैदिक-परम्परा में नवजात शिशु के तन-मन को पुष्ट करने एवं दुष्ट शक्तियों से उसका संरक्षण करने के प्रयोजन से भी किया जाता है। • इस संस्कार को सम्पन्न करते समय जो वस्तुएँ आवश्यक मानी गईं हैं, उनका उल्लेख श्वेताम्बर-परम्परा के ग्रन्थों में ही देखने को मिलता है, अन्य दोनों परम्पराओं में तत्सम्बन्धी कोई चर्चा दृष्टिगत नहीं होती है। इससे ज्ञात होता है कि श्वेताम्बर-परम्परा में यह संस्कार बहु प्रचलित रहा होगा। इस प्रकार हम देखते हैं कि यह संस्कार-विधि सभी परम्पराओं में अपनीअपनी परिपाटी के अनुसार की जाती है तथा इस जातकर्म संस्कार द्वारा पुत्र संरक्षण एवं अशुचि-निवारण की महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं। उपसंहार भारतीय-संस्कृति में जन्म संस्कार का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह संस्कार शिशु के जन्म के बाद नाल काटने से पहले होता है। सामान्यतया यह देखा जाता है कि यदि पुत्र का जन्म हो, तो पूरे परिवार में असीम आनन्द का वातावरण छा जाता है। अधिकांश परम्पराओं में तो छत के ऊपर थाली बजाकर पूरे गाँव में पुत्र जन्म की सूचना दी जाती है। अड़ोस-पड़ोस के लोग आकर बधाई देते हैं, यह एक सामान्य लोकाचार है।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy