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78...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन
पूर्व काल में पुत्रोत्पत्ति के बाद बारह विभिन्न पात्रों में पकायी रोटी को बलि के रूप में बाँटकर वैश्वानर को समर्पित किया जाता था। इस कृत्य का फल बताते हुए शास्त्रों में कहा गया है कि यह कर्म करने से जातक पवित्र, गौरवशाली एवं धन-धान्य से पूर्ण होता है। इन क्रियाकलापों पर गहराई से ध्यान दिया जाए तो कुछ विचारणीय तथ्य सामने आते हैं जैसे कि वह बलि वैश्वानर को बारह पात्रों में ही क्यों अर्पित की जाती है? उस बलि में अन्य पक्वान्न भी दिए जा सकते हैं? बलि के रूप में रोटी को ही स्वीकार क्यों किया जाता है? तात्पर्य यह है कि बारह बर्तन बारह मास के द्योतक हैं तथा बलि के रूप में दी जाने वाली रोटियाँ खाद्यान्न का प्रतिनिधित्व करती हैं।
यहाँ यह ध्यातव्य है कि आदमी जब पैदा होता है तो सर्वप्रथम उसे हवा की आवश्यकता होती है, फिर पानी की और फिर रोटी की आवश्यकता होती है, अत: बलि के रूप में रोटी चढ़ाना विज्ञान सम्मत है।
एक अन्य कारण यह भी है कि रोटी ही एक ऐसी वस्तु है, जिसका सेवन राजा से रंक तक सभी कोई करते हैं अत: यह माना जा सकता है कि रोटी को बलि के रूप में दिया जाना अपने-आप में एक बहत ही उदात्त-भावना तथा संयम की धारणा का संसूचक है। वैदिक-साहित्य में वैश्वानर को धन-धान्य, गौरव तथा पशु के देवता के रूप में स्वीकारा गया है अत: वैश्वानर को रोटी की बलि चढ़ाई जाती है।21 ____ इस प्रकार ज्ञात होता है कि वैदिक परम्परा में जातकर्म सम्बन्धी विधिविधान के अनेक रूप हैं और वे अपनी मान्यतानुसार सही और सार्थक प्रतीत होते हैं।
सीमन्तोन्नयन संस्कार- वैदिक परम्परा में मान्य यह तीसरा संस्कार गर्भाधान के बाद चौथे, छठवें तथा आठवें मास में सम्पन्न किया जाता है। आश्वलायनगृह्यसूत्र में इसे चौथे मास में करने का उल्लेख है-'चतुर्थे गर्भमासे सीमन्तोन्नयनम्।' सामान्यतः गर्भ के चौथे मास के बाद बालक के अंग-प्रत्यंग निर्मित हो जाते हैं। हृदय, मस्तिष्क आदि बन जाने के कारण गर्भ में चेतना आ जाती है, इसलिए उसमें इच्छाओं का उदय होने लगता है। वे इच्छाएँ माता की चेतना में प्रतिबिम्बित होकर प्रकट होती हैं, जो ‘दोहद' कहलाती हैं। गर्भ में जब मन और बुद्धि में नूतन चेतना शक्ति का उदय होने लगता है, उस समय जो