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________________ पुंसवन संस्कार विधि का सामान्य स्वरूप ...67 चरणों में नमस्कार कर वस्त्र की जोड़ी, सोने-चाँदी की आठ मुद्राएँ और पान सहित आठ सुपारी दें। • तत्पश्चात पौषधशाला में जाकर साधुजनों को वन्दना करें एवं यथाशक्ति उन्हें दान दें। • परिवार के वरिष्ठजनों को प्रणाम करें। फिर अपने कुलाचार के अनुसार कुल देवता आदि का पूजन करें। दिगम्बर- दिगम्बर परम्परा के अनुसार जिस गर्भवती का प्रीति नामक दूसरा संस्कार सम्पन्न किया जा रहा हो, वह गर्भाधान संस्कार की भाँति जिनेन्द्रदेव की पूजा करे। उस दिन गृह चैत्य के दरवाजे पर तोरण बाँधे, दो पूर्ण कलश की स्थापना करे तथा उस दिन से लेकर निज वैभव के अनुसार प्रतिदिन नगाड़े आदि बजवाए।14 आदिपुराण में इस संस्कार को सम्पन्न करने के लिए मंत्र का उल्लेख भी किया गया है, किन्तु वह मन्त्र किस समय बोला जाना चाहिए, इसका कोई निर्देश नहीं है।15। वैदिक- वैदिक परम्परा में इस संस्कार को निष्पन्न करने के लिए दो-तीन प्रकार की विधियाँ कही गई हैं। पारस्करगृह्यसूत्र के अनुसार गर्भधारण के बाद तीसरे या चौथे मास में या उसके भी बाद जब चन्द्र किसी पुरुष नक्षत्र अथवा पुष्य में संक्रमित होता था, उस समय यह संस्कार निष्पन्न किया जाता था।16 एक मतानुसार इस संस्कार के दिन गर्भिणी को उपवास करना होता था। वह स्नान कर नए वस्त्र पहनती थी तथा रात्रि में वटवृक्ष की छाल को कूटकर और उसका रस निकालकर स्त्री की नाक के दाहिने रन्ध्र में छोड़ा जाता था।17 कतिपय गृह्यसूत्रों के अनुसार विविध मन्त्रों के साथ कुशकण्टक और सोमलता नामक वनस्पति भी कुटी जाती थी। इस संस्कार के बारे में एक निर्देश यह भी दिया गया है कि यदि पिता यह चाहता है कि उसका पुत्र वीर्यवान् तथा बलवान हो तो वह एक जलपात्र स्त्री की गोद में रख दें और उसके उदर का स्पर्श करते हुए 'सुपर्णोऽसि' आदि मन्त्र का उच्चारण करे।19 ____ परवर्ती धर्मसूत्रों एवं स्मृतियों में इस संस्कार की यही विधियाँ वर्णित है। पुंसवन संस्कार सम्बन्धी विधि-विधानों के रहस्यात्मक प्रयोजन श्वेताम्बर और वैदिक परम्परा में यह संस्कार पुत्र-प्राप्ति की कामना से किया जाता है, जबकि दिगम्बर परम्परा में इस संस्कार को पुत्रोत्पत्ति की कामना से न करके, गर्भ की पुष्टि एवं उत्तम सन्तान की प्राप्ति के निमित्त किया जाता है। इसके कुछ प्रयोजन निम्न हैं
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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