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66...जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन दर्शन, स्वाध्याय आदि शुभ प्रवृत्तियों में रत रहना चाहिए। उपासना से अन्तःकरण शुद्ध होता है और उसमें दिव्य प्रकाश बढ़ता है, इसलिए गर्भवती को नित्य नियमित परमात्म उपासना अवश्य करनी चाहिए।12
पति, परिवार का मुखिया होता है अत: उसे गर्भिणी की स्वस्थता एवं निर्मल मानसिकता का पूरा ध्यान रखना चाहिए। पुंसवन संस्कार के उपरान्त गर्भस्थ जीव को सुसंस्कारित एवं सुशिक्षित करने हेतु कुटुम्बियों को एवं पति को गर्भिणी के लिए पूर्वोक्त नियमों के समान ही अन्य नियम आदि का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। पुंसवन संस्कार की उपदिष्ट विधि
श्वेताम्बर- श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार पुंसवन संस्कार की विधि इस प्रकार है13
• सर्वप्रथम गृहस्थ गुरु पूर्व कथित वेशभूषा को धारण कर पति के समीप आए। • फिर रात्रि के चतुर्थ प्रहर में जिस समय आकाश में तारे हों, उस समय सौभाग्यवती नारियों द्वारा मंगलगीत गाते हुए गर्भिणी स्त्री का तेलमर्दन और उबटन कर जल से स्नान कराया जाए। . उसके बाद प्रभात होने पर नवीन वस्त्र धारण की हुई गर्भवती की साक्षी में उसका पति, देवर या कुल पुरुष कोई भी गृह-चैत्य की प्रतिमा का बृहद् स्नात्राभिषेक करे। . फिर जिन प्रतिमा का सहस्रमूली से स्नान कराए। फिर समस्त तीर्थों के जल से स्नान कराए। • तदनन्तर सभी प्रकार के स्नात्र जल को सुवर्ण-चाँदी या ताम्र के पात्र में रखे। • उसके बाद शुभ आसन पर बैठी हुई गर्भिणी के सिर, स्तन एवं उदर को गृहस्थ गुरु स्नात्र जलसहित कुश द्वारा अभिसिंचित करें। • उस समय गुरु वेद मंत्र को आठ बार पढ़ें। वह मंत्र निम्न है___“ॐ अहँ नमस्तीर्थंकरनामकर्मप्रतिबन्धसंप्राप्त-सुरासुरेन्द्र- पूजायाहते
आत्मने त्वमात्मायुः कर्मबन्धप्राप्यं तं मनुष्य जन्मगर्भा-वासमवाप्तौसि, तद्भवजन्मजरामरणगर्भवासविच्छित्तये प्राप्तार्हद्धर्मोऽर्हद्भक्त: सम्यक्त्वनिश्चल: कुलभूषणः सुखेन तव जन्मास्तु। भवतु तव त्वन्मातापित्रोः कुलस्याभ्युदयः, ततः शान्ति: तुष्टिर्वृद्धिः ऋद्धिः कान्ति: सनातनी अर्ह ॐ॥” ।
• उसके बाद वह गर्भिणी अपने आसन से उठकर सर्व जाति के आठ फल, स्वर्णादि की आठ मुद्राएँ जिन-प्रतिमा के समक्ष रखें। • फिर उस गुरु के