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________________ पुंसवन संस्कार विधि का सामान्य स्वरूप ...63 पुंसवन संस्कार सम्बन्धी मुहूर्त विचार श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार पुंसवन संस्कार के लिए निम्न नक्षत्र आदि शुभ-अशुभ माने गए हैं- मूल, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, मृगशिरा, श्रवण नक्षत्र; मंगल, गुरु और सोमवार तथा रिक्ता, दग्धा, क्रूर, तीन दिन को स्पर्श करने वाली षष्ठी, अष्टमी, द्वादशी और अमावस्या को छोड़कर शेष तिथियाँ पुंसवन संस्कार के लिए श्रेष्ठ मानी गईं हैं। इन नक्षत्र आदि में किया गया संस्कार पूर्ण फलदायी होता है। आचारदिनकर में यह भी कहा गया है कि जब पति का चन्द्र बलवान हो, उस समय यह संस्कार प्रारम्भ करना चाहिए। दिगम्बर परम्परा में दूसरा 'प्रीति' नामक संस्कार है। वह संस्कार किन शुभ घड़ियों में किया जाना चाहिए, उस सम्बन्ध में कोई निर्देश नहीं है। संभवत: इस परम्परा में यह संस्कार सम्पन्न करने से पूर्व उसके लिए शुभ दिन आदि अवश्य देखे जाते होंगे, लेकिन आदिपुराण में इस सम्बन्धी कोई चर्चा नहीं की गई है। वैदिक परम्परा में दूसरा संस्कार 'पुंसवन' नाम का है। यह संस्कार किन शुभ दिन आदि में किया जाना चाहिए, इसका उल्लेख करते हुए आश्वलायनगृह्यसूत्र में निर्देश है-गर्भाधान के तीसरे महीने में पुष्य नक्षत्र के दिन यह संस्कार किया जाना चाहिए। कुछ विद्वान इस संस्कार को पुरुष नक्षत्र में करने का निर्देश करते हैं, किन्तु इस सम्बन्ध में भी विद्वानों का एकमत नहीं है। पुंसवन संस्कार हेतु काल का विचार __ पुंसवन संस्कार किस दिन या किस माह में किया जाना चाहिए। इस सम्बन्ध में श्वेताम्बर परम्परा का मन्तव्य है- यह संस्कार गर्भ धारण से आठ महीने पूर्ण होने पर किया जाना चाहिए। इससे सूचित होता है कि गर्भस्थ जीव के पूर्ण विकसित होने पर यह संस्कार किया जाता है। ' दिगम्बर परम्परा में 'पुंसवन' के स्थान पर 'प्रीति' नामक संस्कार है। आदिपुराण के अनुसार यह संस्कार गर्भाधान के बाद तीसरे माह में किया जाना चाहिए। वैदिक परम्परा में संस्कार काल को लेकर अलग-अलग धारणाएँ हैं। मनु और याज्ञवल्क्य के अनुसार गर्भाशय में गर्भ के गतिशील होने से पूर्व यह संस्कार सम्पन्न करना चाहिए। शंख भी इसी बात की पुष्टि करते हैं। बृहस्पति के अनुसार इस कृत्य के लिए यही काल उचित माना गया है। जातुकर्ण्य और शौनक के मतानुसार गर्भधारण के स्पष्ट हो जाने पर तीसरे माह में यह संस्कार
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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