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________________ 62... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन गया है ऐसा वैदिक मत है । पुंसवन संस्कार की आवश्यकता वैधानिक संदर्भों में पुंसवन संस्कार क्यों किया जाए यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है ? वर्तमान परम्परा में यह संस्कार प्राय: विलुप्त सा हो चुका है, किन्तु किसी समय इसकी उपादेयता सर्वाधिक रही होगी, तभी तो इस संस्कार का स्वरूप उपलब्ध है। वैदिक ग्रन्थों का अवलोकन करने से ज्ञात होता है कि पूर्वकाल में पुत्र को जन्म देने वाली माता की प्रशंसा की जाती थी तथा सामाजिक क्षेत्र में उसके पति को सम्मानीय स्थान मिलता था। संभवतः इस संस्कार की आवश्यकता उस युग में सर्वाधिक महसूस की गई होगी, जब युद्ध के लिए पुरुषों की आवश्यकता अनिवार्य हो जाती थी। युद्ध के बाद पुरुष संख्या में प्रायः कमी आ जाती थी अतः उस कमी की पूर्ति के लिए यह संस्कार प्रवर्तित हुआ हो - ऐसा भी कहा जा सकता है। पुंसवन संस्कार का ही एक उपांगभूत संस्कार है - 'अनवलोमन' । यह संस्कार गर्भस्थ शिशु के रक्षार्थ और असमय में गर्भच्युत न हो जाए, इस लक्ष्य से किया जाता है। इसमें शिशु की रक्षा के लिए सभी मांगलिक पूजन, हवन आदि कार्यों के अनन्तर जल एवं औषधियों द्वारा प्रार्थना की जाती है। पुत्र प्राप्ति हेतु पुराणों में पुंसवन नामक एक व्रत विशेष का विधान भी बतलाया गया है, जो एक वर्ष तक चलता है। स्त्रियाँ पति की आज्ञा से ही इस व्रत का संकल्प लेती हैं। भागवत के छठवें स्कन्ध, अध्याय 18-19 में बताया गया है कि महर्षि कश्यप की आज्ञा से दिति ने इन्द्रवध की क्षमता रखने वाले पुत्र की कामना से यह व्रत किया था। 2 पुत्र की उत्पत्ति से कुल परम्परा अक्षुण्ण बनी रहे, इसी हेतु से यह संस्कार किया जाता है। शास्त्रीय दृष्टि से पुंसवन संस्कार करवाने का अधिकारी श्वेताम्बर परम्परा में सामान्यतया जैन बाह्मण (गृहस्थ गुरु) या क्षुल्लक को यह संस्कार कराने का अधिकारी माना गया है। दिगम्बर परम्परानुसार तत्सम्बन्धी कोई स्पष्ट निर्देश प्राप्त नहीं हुआ है। अनुमानतः सुयोग्य गृहस्थाचार्य ही यह संस्कार करवाते हैं। वैदिक परम्परा में यह संस्कार गर्भिणी का पति या उसकी अनुपस्थिति में उसके देवर के द्वारा करवाए जाने का उल्लेख है ।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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