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________________ x... जैन गृहस्थ के सोलह संस्कारों का तुलनात्मक अध्ययन कोलकाता संघ को शोभायमान कर रहा है। आपकी अनुभव श्रेष्ठता, ज्ञान गांभीर्य, दीर्घ दृष्टि आदि विशेषताओं के कारण भारतवर्ष की विभिन्न संस्थाएँ आपको अपना कार्यकर्ता बनाकर गौरवान्वित अनुभव करती हैं। आप अनेक धार्मिक, सामाजिक, व्यापारिक, व्यवसायिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपका वर्चस्व मात्र कोलकाता या दुर्गापुर अथवा किसी एक परम्परा तक सीमित नहीं है अपितु . समस्त क्षेत्रों में आपका प्रभूत्व देखा जाता है। आपका जीवन हजारों श्रेष्ठ गुण रूपी दीपों के प्रकाश से शोभायमान है परन्तु उन गुणों का लेश मात्र भी अभिमान आप में दृष्टिगत नहीं होता है। आपके जीवन में अनुशासन बद्धता के साथ स्नेह, सुविधा के साथ नियंत्रण, पुण्य के साथ व्यवस्था, वात्सल्य के साथ दिशा निर्देशन आदि का अनुपम संगम है। आपकी जीवन संगिनी श्रीमती निर्मलाजी नाम के अनुसार ही स्वभाव एवं गुणों से भी निर्दोष हैं। उनका सरल स्वभाव, मिलनसारिता एवं स्नेह वृत्ति आगंतुक को मातृ वात्सल्य का एहसास करवाती है। आप दोनों ने मिलकर अपने पुत्र श्रेयांस और दोनों पुत्रियों को बहत अच्छे संस्कारों से नवाजा है। तीनों ही धर्म में दृढ़ एवं आज्ञा संपन्न हैं तथा आज की युग पीढ़ी के लिए आदर्श हैं। पूज्या संघरत्ना शशिप्रभाश्रीजी म.सा. के मण्डल से आपका जुड़ाव गत 30-40 वर्षों से रहा है। स्वाध्याय एवं ज्ञानार्जन के क्षेत्र में आपकी विशेष रुचि होने से साध्वी सौम्यगुणाजी के अध्ययन काल में आपका विशेष योगदान रहा है। आप ही के अथक प्रयासों के कारण साध्वीजी का कार्य संपूर्णता को प्राप्त कर सका। सज्जनमणि ग्रंथमाला आपके इस सहयोग एवं उत्साहवर्धन के लिए आपका आभारी रहेगा। आप देव-गुरु-धर्म की भक्ति में इसी प्रकार सदैव संलग्न रहें और मुक्ति मंजिल को प्राप्त करें यही मंगल कामना।
SR No.006239
Book TitleJain Gruhastha Ke 16 Sanskaro Ka Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages396
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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