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________________ शोध प्रबन्ध सार ...33 को दूर करना। • धार्मिक क्रिया-कलापों का विशेष अधिकार प्राप्त करना जैसेउपनयन संस्कार से वेदाध्ययन एवं धार्मिक कृत्यों के अनुष्ठान का अधिकार प्राप्त होता है। • पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति करना। • व्यक्तित्व निर्माण करना। • चारित्रिक विकास करना। • समस्त शारीरिक क्रियाओं को आध्यात्मिक लक्ष्य से परिपूरित करना। निष्कर्षतः संस्कारों के आरोपण का उद्देश्य महान एवं सर्वोत्तम है। इन संस्कारों के पीछे इहलौकिक या भौतिक सुख की कोई कामना नहीं होती। किसी प्रकार का कोई स्वार्थ भी निहित नहीं होता। जीवन यात्रा में प्रगति पथ पर बढ़ने हेतु सद्गुणों का आविर्भाव करना तथा उनका सदाचरण करते हुए जीवन को आदर्शमय बनाना ही इसका मूलभूत उद्देश्य है। सोलह संस्कारों के अध्ययन पर आधारित यह द्वितीय खण्ड सतरह अध्यायों में उपविभाजित हैं। __ मानव एवं संस्कारों का सम्बन्ध आदिकाल से रहा हुआ है। मानव में मानवीय गुणों का आरोपण संस्कारों के द्वारा ही किया जाता है। अत: प्रथम अध्याय में संस्कार और उनकी अर्थवत्ता का विवेचन किया गया है। इसी के साथ विविध संदर्भो में संस्कारों की उपयोगिता एवं प्रयोजन बताए गए हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संस्कारों की प्रासंगिकता एवं उनकी आवश्यकता को दिग्दर्शित करते हुए वैज्ञानिक दृष्टि से उनकी सकारात्मकता तथा व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में उसकी उपादेयता को भी स्पष्ट किया है। __इस खण्ड का दूसरा अध्याय सोलह संस्कारों में से प्रथम गर्भाधान संस्कार को विवेचित करता है। गर्भाधान संस्कार से तात्पर्य है गर्भ स्थापना करने सम्बन्धी विधि-विधान। इस संस्कार के द्वारा वीर्य एवं गर्भ सम्बन्धी दोषों को दूर किया जाता है। यह संस्कार मात्र बालक प्राप्ति का संस्कार नहीं अपितु सुयोग्य बालक की नींव रखने का संस्कार है। इस अध्याय में वर्णित गर्भाधान संस्कार का अर्थ, उसके अधिकारी, उसकी आवश्यकता, आदि आम जनता को गर्भाधान संस्कार से परिचित करवाती है। __यह अध्याय गर्भवती माताओं के मन में सात्त्विक, नैतिक एवं पवित्र विचारों का स्फुरण करते हुए एक सुसंस्कृत भावी पीढ़ी के निर्माण में सहायक बनेगा यही अभिलाषा है।
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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