SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शोध प्रबन्ध सार ...31 संस्कार ही प्रदान करते हैं। इसी तरह मानव में शुभ संस्कारों के माध्यम से सद्विचार एवं सद्व्यवहार का प्रादुर्भाव होता है। इन्हीं गुणों के पुण्य प्रभाव से मानवीय सत्ता परमात्म तत्त्व का साक्षात्कार करती है। मानव समाज पर संस्कारों का प्रभाव- संस्कार प्रदान करने के मुख्य रूप में तीन उद्देश्य माने गये हैं__1. दोषपरिमार्जन 2. अतिशयाधान और 3. हीनांगपूर्ति। इनके द्वारा प्राकृतिक पदार्थों में रहे दोषों का परिमार्जन कर इन्हें अधिक उपयोगी एवं आकर्षक बनाने का प्रयास किया जाता है। उसी अभीधेय से प्राच्यकाल से मानव समाज में संस्कारों की महत्ता रही है। चाहे वैदिक संस्कृति हो या श्रमण संस्कृति सभी परम्पराओं में षोडश संस्कारों का प्रावधान किसी न किसी रूप में प्राप्त होता है। मानव कल्याण की भावना से जितने भी आयोजन एवं अनुष्ठान किये जाते हैं, उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण परम्परा संस्कारों की मानी जाती है। संस्कारों एवं धर्म अनुष्ठानों द्वारा व्यक्ति, परिवार एवं समाज को प्रशिक्षित किया जाता है। सामान्यतया हम अनुभव करते हैं कि स्वाध्याय, सत्संग, चिंतन, मनन आदि का प्रभाव मनुष्य की मनोभूमि पर पड़ता है और उससे व्यक्ति का भावना स्तर विकसित होता है। ___मनुष्य को सुसंस्कृत बनाने का सरल एवं सटीक उपचार संस्कार है जो व्यक्ति सुसंस्कारित होता है, उसका जीवन पारिवारिक, सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्र में स्व-पर उपयोगी बनता है। अस्तु संस्कार जीवन निर्माण की अद्भुत कला है। संस्कारों का प्रयोजन- श्री रामशर्मा आचार्य का मन्तव्य है कि जिस प्रकार अभ्रक आदि सामान्य पदार्थ को बार-बार अग्नि से संस्कारित करने से मकरध्वज जैसे बहुमूल्य रसायन की प्राप्ति होती है। उसी प्रकार मनुष्य पर बारबार संस्कारों का प्रयोग करके उसे सुसंस्कारी बनाया जाता है। यह एक अद्भुत विज्ञान है। वर्तमान समाज अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। शेष समस्याओं का समाधान तो विज्ञान अपनी खोजों के द्वारा कर सकता है परन्तु आज के भौतिक युग में मौलिक संस्कारों का होता हास एवं कुसंस्कारों का बढ़ता वर्चस्व कैसे
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy