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शोध प्रबन्ध सार ...29 मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी विधि-विधानों की साहित्य सूची एवं तत्सम्बन्धी 84 ग्रन्थों का सारगर्भित विवरण ग्यारहवें अध्याय में प्रस्तुत किया गया है। मंत्र-तंत्र विधि-विधानों के हृदय के समान हैं। जैनाचार्यों ने इसी महत्ता को वर्धित करने, मंत्र-तंत्र आदि की साधना को सशक्त करने एवं विशिष्ट मंत्र-तंत्रों को चिरंजीवी रखने के उद्देश्य से अनेक बृहद ग्रन्थों की रचनाएँ की। उन्हीं ग्रन्थों का विशदता से परिचय करवाना इस अध्याय का ध्येय है।
इस साहित्यिक खण्ड का बारहवाँ अध्याय ज्योतिष, निमित्त एवं शकुन शास्त्र से सम्बन्धित है। विविध अनुष्ठान परक क्रिया अनुष्ठानों में मुहूर्त आदि का विचार प्रमुख रूप से किया जाता है। शकुन आदि का ध्यान तो प्रत्येक मांगलिक एवं साधना मूलक कार्यों में रखा ही जाता है। आगम शास्त्रों में भी इस विषयक उल्लेख अनेक स्थानों पर मिलते हैं। यद्यपि जैन साधना निवृत्ति मूलक
आध्यात्मिक साधना है परंतु ज्योतिष, निमित्त, शकुन आदि भी अपना महत्त्व रखते हैं। उपांग सूत्रों से लेकर अब तक सैकड़ों ग्रन्थों में इसकी चर्चा की गई है। इस अध्याय में तद्विषयाधारित 90 प्राचीन-अर्वाचीन ग्रन्थों की चर्चा की गई है। जैन ज्योतिष शास्त्र के विकास में इन कृतियों का उल्लेख अवश्य सहयोगी बनेगा।
जैन साहित्य के संवर्धन में जैनाचार्यों का विशेष सहयोग रहा। विधिविधान सम्बन्धी ग्रन्थों में जहाँ कई विषयों का प्रतिपादन स्वतंत्र ग्रन्थों में किया गया है वहीं कुछ ग्रन्थ ऐसे भी हैं जिनमें विविध विधानों का एक साथ उल्लेख है। कुछ ऐसे विधान भी हैं जो अब तक वर्णित विधानों से अलग है परन्तु क्रिया अनुष्ठानों में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। जिन दर्शन, नव्वाणु यात्रा, पर्युषण आराधना एवं अनेक अध्यात्म मूलक विधि-विधानों की चर्चा यत्र-तत्र पुस्तकों में प्राप्त होती है। उन सभी की चर्चा अन्तिम तेरहवें अध्याय में की है।
तेरहवाँ अध्याय विविध विषय सम्बन्धी विधि-विधान परक साहित्य सूची का वर्णन करता है। इस अध्याय में 38 ऐसे ग्रन्थों की विषय वस्तु निरूपित की गई है जिनके माध्यम से अनेक मौलिक विषयों का ज्ञान स्पष्ट होता है। विविध सामाचारी ग्रन्थों का उल्लेख भी इसी अध्याय में किया गया है।
इस प्रकार तेरह अध्यायों में विभाजित यह प्रथम खण्ड जैन साहित्य की विविधता एवं वैभिन्यता को दर्शाता है। विधि-विधान आराधना का एक मुख्य