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________________ 26...शोध प्रबन्ध सार • विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य में विशिष्ट स्थान रखने वाले ग्रन्थों का अपेक्षाकृत विस्तृत परिचय दिया गया है। जो सुधी वर्ग एवं ज्ञान पिपासुओं के लिए विशेष सहायभूत होगा। • अनुपलब्ध ग्रन्थों का प्रामाणिक वर्णन जिनरत्नकोश के आधार पर किया गया है। मुख्य रूप से यह खण्ड तेरह अध्यायों में वर्गीकृत है। प्रस्तुत खण्ड के प्रथम अध्याय में जैन विधि-विधानों के उद्भव एवं विकास की चर्चा की गई है। इसके अनन्तर भारतीय संस्कृति का परिचय देते हुए प्रवर्तक एवं निवर्त्तक धर्म का संक्षिप्त विवरण दिया गया है जो दोनों परम्पराओं में मुख्य रूप से रहे हुए मतभेदों एवं विचारधारा को जानने में सहयोगी सिद्ध होता है। इसी के साथ दोनों परम्पराओं ने एक दूसरे को किस रूप में प्रभावित किया एवं उसके क्या परिणाम रहे इसकी चर्चा पाठक वर्ग के लिए अत्यंत उपयोगी है। तत्पश्चात जैन आगम साहित्य में विधि-विधानों के स्वरूप एवं तदविषयक उल्लेखों के द्वारा विधि-विधानों की आगमिक मौलिकता को प्रमाणित किया गया है। इस अध्याय का मुख्य ध्येय विधि-विधानों की आवश्यकता एवं जनजीवन में उसकी महत्ता को उजागर करना है। प्राचीन सभ्यता के प्रति अहोभाव ही वर्तमान में उस संस्कृति के अभिवर्धन एवं भविष्य में उसके सजीविकरण में सहायक बनेगी। दूसरा अध्याय श्रावकाचार सम्बन्धी विधि-विधान परक साहित्य से सम्बन्धित है। केवलज्ञान प्राप्ति के बाद तीर्थंकर परमात्मा चतुर्विध संघ की स्थापना करते हैं। श्रावक-श्राविका इस संघ रथ के दो मुख्य पहिये हैं। जैन एवं जिन बनने का प्रारंभ श्रावक जीवन से ही होता है अत: सर्वप्रथम इस अध्याय में श्रावकाचार विषयक 74 ग्रन्थों का तात्त्विक विवेचन किया गया है। श्रावकाचार सम्बन्धी प्रसिद्ध ग्रन्थों की विषय वस्तु का विस्तृत वर्णन उन कृतियों की संक्षिप्त एवं सारभूत जानकारी के लिए अत्यन्त उपयोगी है। ___ यह अध्याय विविध परम्पराओं में श्रावकाचार सम्बन्धी नियमों को जानने में एवं तद्विषयक ग्रन्थों के अध्ययन के माध्यम से जीवन को आचारनिष्ठ बनाने में सहयोगी बनेगा।
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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