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________________ 18...शोध प्रबन्ध सार जैनाचार्यों ने इन्हें सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार परिष्कृत करने का भी प्रयास किया। अधिकांश विद्वद जैनाचार्य जैसे- हरिभद्रसूरि, वर्धमानसूरि आदि वैदिक परम्परा के अनुयायी थे। अत: जैन दीक्षा अंगीकार करने के बाद भी कहीं न कहीं उनकी रचनाओं में वैदिक क्रियाकाण्डों का प्रभाव आना स्वाभाविक था परंतु इन सब विषयों पर एक सुव्यवस्थित शोध कार्य की नितांत कमी है। यद्यपि पूर्वकाल में जैन आचार और विधि-विधानों के संदर्भ में विपुल साहित्यिक संरचना हुई किन्तु उनमें से कुछ ही ग्रन्थ प्रकाशित एवं अनुदित हुए। अनेक ऐसे ग्रन्थ हैं जो काल-कवलित हो चुके हैं या दीमकों द्वारा भक्षित होने के लिए जैन शास्त्र भंडारों में प्रतीक्षारत हैं। अनेक ऐसे ग्रन्थ हैं जिनके निर्माण होने के बाद काल विशेष तक अस्तित्व एवं प्रचलन में रहने के संकेत तो मिलते हैं परन्तु वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। अनेक ग्रन्थ ज्ञान भण्डारों में हैं परन्तु उनके विषय में किसी को जानकारी ही नहीं है। प्राकृत एवं संस्कृत भाषाओं की क्लिष्टता एवं अज्ञेयता के कारण अधिकांश शोधकर्ता इन्हें छूना भी नहीं चाहते। कई लोग वर्तमान जीवन शैली में इन्हें अधिक उपयोगी नहीं मानते अत: इन्हें गौण कर रहे हैं। कई लोग परम्परा में प्रचलित विधानों का अनुकरण करते रहते हैं। उन्हें यथार्थ के विषय में जानने की कोई रुचि ही नहीं है। परन्तु साहित्यिक दृष्टि से यह एक खेद का विषय है। हर उपलब्ध वस्तु वर्तमान में उपयोगी हो तो ही उसके प्रति ध्यान आकृष्ट किया जाए यह एक गलत धारणा है। इस दृष्टि से तो ऐतिहासिक धरोहरों की कोई मूल्यवत्ता ही नहीं रहेगी। पूर्वकालीन रचनाएँ ही हमें हमारी संस्कृति के विभिन्न आयामों एवं भिन्नभिन्न काल में रहे उसके स्वरूप से परिचित करवाती हैं। वर्तमान में कई भ्रान्त मान्यताएँ भी जन मानस में स्थापित हो चुकी है। जिसके कारण छोटा सा जैन समाज भी अनेक उपविभागों में बट रहा है। इस कारण भी जैन विधि-विधानों का सम्यक रूप उपस्थित करना आवश्यक है। जैन विधि-विधान सम्बन्धी कुछ आवश्यक बिन्दु जिन पर विचार करना मेरी दृष्टि से अत्यन्त जरुरी है वे इस प्रकार हैं • जैन विधि-विधान के सम्बन्ध में प्राप्त विपुल ग्रंथ सामग्री के ऐतिहासिक
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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