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________________ शोध प्रबन्ध सार ...17 हैं। इन तान्त्रिक साधनाओं का दुरूपयोग न हो इस कारण गुरु केवल योग्य शिष्य को ही सब कुछ प्रदान करते थे। इसीलिए संभवत: विद्वद वर्ग भी इनसे अनभिज्ञ रहा। दूसरी बात यह है कि विधि-विधानों का क्षेत्र बहुत व्यापक है एवं इनमें पूर्वकाल से अब तक बहुत से परिवर्तन भी आए हैं। उन सबकों सम्यक रूप से समझने के लिए योग्य गुरु निश्रा एवं भिन्न-भिन्न समय में रही सामाजिक स्थिति का ज्ञान भी आवश्यक है। ___तीसरा तथ्य यह है कि यह विधान योग्यता संपन्न आचार्यों या मुनियों के द्वारा ही अधिकांश रूप में संपन्न किए-करवाए जाते हैं। वर्तमान में इनकी लगाम पूर्ण रूपेण विधिकारकों के हाथ में जा चुकी है अत: सामान्य जनता हमेशा ही मात्र दर्शक या आराधक के रूप में इनसे जुड़ी रही। ___ यदि इस संदर्भ में हुए कार्यों पर दृष्टि दौड़ाएँ तो जहाँ तक मुझे जानकारी है तदनुसार जैन तंत्र, मंत्र की साधना एवं कर्मकाण्ड से सम्बन्धित कुछ कृतियों का प्रकाशन जरूर हुआ है किन्तु शोधपरक दृष्टि से इन पर अब तक कोई कार्य देखने में नहीं आया है। कुछ विशेष उपयोगी एवं सुप्रसिद्ध ग्रन्थों का हिन्दी एवं अंग्रेजी में अनुवाद भी हुआ है। परन्तु इनके ऐतिहासिक विकास क्रम एवं पारस्परिक प्रभाव आदि को उजागर करने के कार्य नहीवत ही हुए हैं। विवरणात्मक सूचना देने की दृष्टि से आचार्य हरिभद्र, आचार्य पादलिप्त, आचार्य जिनप्रभ, आचार्य वर्धमानसूरि आदि कुछ आचार्यों द्वारा रचित कर्मकाण्ड मूलक ग्रन्थ अनुदित एवं प्रकाशित हुए हैं। किन्तु उनका तुलनात्मक अध्ययन, उनमें आए परिवर्तन, उनकी मौलिकता एवं वर्तमान में उनका उपयोग आदि विषयक अध्ययन दृष्टिपथ में नहीं आता। जैन विधि-विधानों एवं कर्मकाण्डों को विशेष रूप से बौद्ध एवं वैदिक परम्परा से प्रभावित माना जाता है। परंतु यह प्रभाव कब, कैसे, किस रूप में और कितनी मात्रा में आया? इसकी कोई ठोस जानकारी नहीं है। कुछेक विद्वानों द्वारा थोड़ी बहुत जानकारी यत्र-तत्र बिखरी हुई मिलती है या फिर कुछ ग्रन्थों की भूमिका आदि के रूप में किंचिद उल्लेख प्राप्त होते हैं। जैन देवी-देवताओं में हिन्दू और बौद्ध देवी-देवताओं का प्रवेश कैसे और कब से हुआ? इस विषय में मात्र संकेतात्मक जानकारी ही प्राप्त होती है। इसी प्रकार प्रतिष्ठा आदि मुख्य क्रियाकाण्डमूलक विधि-विधान भी अन्य परम्पराओं से प्रभावित हुए। कई बार
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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