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________________ 16...शोध प्रबन्ध सार ही साथ उस साधना के द्वारा प्राप्त सिद्धियों को सामाजिक कल्याण के लिए उपयोग करने का भी निर्देश दिया गया है। भगवान महावीर का जीवन इस विधान का साक्षी है। 12 वर्षों तक एकाकी साधना करने के बाद वे पुन: समाज में लौट आये। चतुर्विध संघ की स्थापना की तथा जीवन पर्यंत उन्हें मार्गदर्शन देते रहे। यही तथ्य विधि-विधानों के विषय में भी लागू होता है। जैन विधिविधानों का मुख्य सम्बन्ध तो वैयक्तिक जीवन से ही है लेकिन उसकी फलश्रुति हमारे सामाजिक जीवन को भी प्रभावित करती है। ____ वस्तुत: विधि-विधान साधना पक्ष के आवश्यक अंग हैं। कोई भी साधना विधि युक्त होने पर ही उसमें सफलता हासिल होती है। यह ध्यातव्य है कि जैन साधना पद्धति में वैयक्तिक कल्याण के साथ सामाजिक विकास को भी उतना ही महत्त्व दिया गया है। कई साधनाएँ वैयक्तिक लाभ के उद्देश्य से न करके सामाजिक उत्थान हेतु भी की जाती है। उदाहरण के तौर पर जैन मुनि वैयक्तिक लाभ की दृष्टि से मन्त्र-यन्त्र की साधना नहीं कर सकता, किन्तु संघ हित के लिए इनका उपयोग कर सकते हैं। इससे यह सुसिद्ध है कि जैन विधि-विधानों का गुम्फन वैयक्तिक विकास की दृष्टि से ही नहीं सामाजिक एवं आध्यात्मिक उत्थान की अपेक्षा से भी हुआ है। इनका प्रमुख उद्देश्य नर से नारायण, जीव से शिव, आत्मा से परमात्मा की दिशा में अग्रसर होना है। यदि हम जैन साहित्य का अवलोकन करें तो ज्ञात होता है कि जैन विधिविधानों पर विपुल साहित्य का सर्जन जैनाचार्यों द्वारा किया गया है। किन्तु संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं में रचित उन ग्रन्थों की विषय वस्तु से सामान्य जनता आज भी अपरिचित है। इन ग्रन्थों की वर्तमान संदर्भ में क्या आवश्यकता है एवं उन्हें कैसे जन उपयोगी बना सकते हैं? यह एक विचारणीय तथ्य है। अब तक की शोध यात्रा के दौरान मुझे ऐसा प्रतीत हुआ है कि इन ग्रन्थों की सम्यक जानकारी विद्वदवर्ग को भी अधिक नहीं है। इनका हिन्दी अनुवाद या इन पर शोध कार्य भी बहुत सीमित है। आचार-विचार प्रधान ग्रन्थों पर तो फिर भी शोध कार्य होते रहते हैं एवं लेखकों द्वारा भी इस विषय पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है किन्तु तन्त्र, मन्त्र एवं कर्मकाण्ड सम्बन्धी साहित्य प्राय: उपेक्षित रहा। गुरु-शिष्य परम्परा के माध्यम से इसका आदान-प्रदान अवश्य होता रहा है परन्तु कोई ठोस साहित्यिक कार्य दृष्टिगत नहीं होता। इसके कई कारण भी हैं। सर्वप्रथम विधि-विधान एवं तान्त्रिक साधनाएँ अनेक रहस्यों के घेरे में वेष्टित
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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