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शोध प्रबन्ध सार ...171 इस खण्ड के पाँचवें अध्याय में अठारह कर्त्तव्य सम्बन्धी मुद्राओं का सविधि विश्लेषण किया है। ___ इसमें मुद्रा धारण करने से आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक क्षेत्र में होने वाले विभिन्न सुपरिणामों की चर्चा भी की गई है।
बौद्ध मुद्रा विषयक अध्ययन करते हुए ग्यारह ऐसी मुद्राओं का वर्णन प्राप्त होता है जिनका संबंध बौद्ध परम्परा की पूजा उपासना से है।यह मुद्राएँ विशेष रूप से दोनों हाथों का प्रयोग करके ही बनाई जाती है। इनका लक्ष्य पूजा के दौरान आंतरिक भावों को अभिव्यक्त करना है। छठे अध्याय में मुद्राओं को स्पष्ट करने के लिए उनका सुंदर चित्रण विधि एवं स्वरूप के साथ किया गया है। ___सातवाँ अध्याय म-म-मडोस सम्बन्धी मुद्राओं का प्रयोग कब और क्यों करना चाहिए? इस विषयक सफल निर्देशन करता है। ___म-म-मडोस वज्रायना देवी तारा के समक्ष की जाने वाली एक विशेष पूजा पद्धति है। इसमें प्रयुक्त छः मुद्राएँ भगवान बुद्ध के विशिष्ट ज्ञान प्रकाश की सूचक हैं एवं जीवन शुद्धिकरण में सहायभूत हैं। इस अध्याय में इनका वर्णन उपासना पद्धति को अधिक रूचिपूर्ण और जीवंत बनाने के लिए किया गया है।
मुद्रा प्रयोग एक सार्वभौमिक विधान है। मात्र आर्य सभ्यता में ही नहीं अपितु विश्व की विविध परम्पराओं में इन्हें समाचरित किया जाता है। आठवें अध्याय में जापानी बौद्ध परम्परा में प्रचलित मुद्राओं के रहस्यात्मक स्वरूप का वर्णन किया गया है।
इस अध्याय में लगभग 75 मुद्राओं का विश्लेषण किया गया है। इस विश्लेषण में विवेच्य मुद्राओं का महत्त्व एवं उनकी साधना के परिणामों का वर्णन है।
भारतीय वटवृक्ष की एक प्रमुख शाखा है बौद्ध संप्रदाय। भगवान बुद्ध का जन्म, विचरण, बोधि प्राप्ति, निर्वाण आदि समस्त प्रमुख घटनाएँ भारत की भूमि पर ही घटित हुई है। नौवें अध्याय में भारतीय बौद्धों द्वारा पूजा-उपासना में प्रयुक्त विशिष्ट मुद्राओं का उल्लेख किया गया है। यह मुद्राएँ मुख्य रूप से द्रव्य अर्पण से सम्बन्धित है। इन मुद्राओं का सचित्र विस्तृत उल्लेख साधना-उपासना को और अधिक भावपूर्ण एवं प्रभावी बनाएगा।