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172... शोध प्रबन्ध सार
खण्ड-19 का दसवाँ अध्याय गर्भधातु-वज्रधातु मण्डल सम्बन्धी मुद्राओं की विधि एवं तात्कालिक प्रभाव का वर्णन करता है । प्रत्येक धर्म साधना में कुछ चित्रित यंत्रों का विशेष महत्त्व होता है। जैन परम्परा में सिद्धचक्र, ऋषिमण्डल, भक्तामर आदि के यंत्र तो वैदिक परम्परा में श्रीयंत्र, महाकाली यंत्र आदि । बौद्ध परम्परा में भी इसी भाँति कुछ यांत्रिक मण्डलाकृतियों का महत्त्व देखा जाता है। गर्भधातु मण्डल एवं वज्रधातु मण्डल के समक्ष की जाने वाली कुल 113 मुद्राओं का वर्णन इस अध्याय में किया गया है।
यह मुद्राएँ होम, पूजन, यज्ञ आदि में धारण की जाती है। इसमें वर्णित विधि, स्वरूप, सुपरिणाम आदि इन मुद्राओं के महत्त्व को उजागर करते हैं एवं उनके प्रयोग हेतु सचेष्ट करते हैं।
बौद्ध मुद्रा सम्बन्धी शोध खण्ड का अन्तिम ग्यारहवाँ अध्याय उपसंहार रूप में भौतिक एवं आध्यात्मिक चिकित्सा में इन मुद्राओं के महत्त्व को प्रकट करता है। प्राणिक हिलिंग एवं एक्युप्रेशर विशेषज्ञों द्वारा प्रयोग आधारित परिणामों के अनुसार यहाँ विविध रोगों के निवारण में उपयोगी मुद्राओं का निर्देशन दिया है।
इसके माध्यम से साधक वर्ग मुद्रा साधना रूपी आध्यात्मिक क्रियाओं की सहायता से विविध रोगों का घर बैठे उपशमन कर पाएगा। आवश्यकता है तो विशेषज्ञों द्वारा उन मुद्राओं को धारण करने की एवं उचित विधि समझकर उसे नियम अनुसार आचरण में लाने की ।
इस खण्ड प्रस्तुति का मुख्य लक्ष्य बौद्ध परम्परागत मुद्राओं के महत्त्व को दिग्दर्शित करना तथा विविध धर्म परम्पराओं में व्यक्ति विकास के लिए साधना के रूप में छुपे हुए मोतियों को सीप से बाहर निकालना है।
खण्ड - 20
यौगिक मुद्राएँ: मानसिक शान्ति का एक सफल प्रयोग
जैन विधि-विधानों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन करते हुए विधि-विधानों की व्यापकता एवं जैन दृष्टि में विशालता के प्रतीक रूप में इस शोध का चतुर्थ भाग विविध परम्पराओं में मुद्रा प्रयोग के महत्त्व पर आधारित है। इस चतुर्थ भाग के छठे उपखण्ड अर्थात खण्ड-20 में यौगिक परम्परा में