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170...शोध प्रबन्ध सार साधना का वर्णन करती हैं। इसी के साथ भगवान बुद्ध के जीवन से संदर्भित 40 मुद्राओं का चित्रण उपलब्ध होता है। यह 40 मुद्राएँ भगवान बुद्ध के साधना काल का वर्णन करती हैं। इसमें भगवान की तप साधना, धर्मोपदेश, शिक्षा ग्रहण आदि विविध घटनाओं का वर्णन है।
प्रस्तुत अध्याय में इन मुद्राओं की प्रामाणिक विधियाँ एवं उनके विविध प्रभावों का वर्णन किया है। इस अध्याय वर्णन का मुख्य ध्येय भगवान बुद्ध के जीवन से परिचित करवाते हुए उनकी साधना एवं शिक्षा को जीवन में आचरित करने का सूक्ष्म प्रयास करना है।
तीसरे अध्याय में सप्तरत्न सम्बन्धी मुद्राओं का सोद्देश्य स्वरूप वर्णित किया है। बौद्ध मान्यता के अनुसार सप्तरत्न विश्व सम्राट के सात विशेष प्रतीक होते हैं। जैन परम्परा में चक्रवर्ती के लिए इसी प्रकार के चौदह रत्नों का उल्लेख किया जाता है।
___ मुद्रा साधना के अन्तर्गत यह सात मुद्राएँ यद्यपि उन सप्त रत्नों की द्योतक हैं परंतु इन मुद्राओं को धारण करने का उद्देश्य आध्यात्मिक समृद्धि को प्राप्त करना है। इनकी साधना वज्रायना देवी तारा के समक्ष की जाती है।
इस अध्याय का मूल ध्येय विविध पूजा-उपासनाओं के आंतरिक लक्ष्य को सुस्पष्ट करना है।
चौथे अध्याय में अष्टमंगल से सम्बन्धित मुद्राओं का स्वरूप एवं मूल्य वर्णन किया है। बौद्ध मान्यता के अनुसार भगवान बुद्ध के चरणों में अष्ट मांगलिक चिह्न थे। यह चिह्न प्राणी मात्र को शुभत्व का संदेश देते हैं तथा जीव मात्र के लिए मंगल भाव प्रसरित करते हैं। वर्तमान में यह चिह्न विशेष धातु, काष्ठ या मिट्टी आदि पर उत्कीर्ण देखे जाते हैं। बौद्ध परम्परा की पूजा उपासना में यह मुद्राएँ अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
इस अध्याय में अष्टमंगल का स्वरूप वर्णन करते हुए उनसे सम्बन्धित मुद्राओं का सचित्र वर्णन किया है। इन मुद्राओं को धारण करने से प्राप्त होने वाले सुपरिणामों का वर्णन भी इस अध्याय में किया गया है।
प्रस्तुत अध्याय में वर्णित 23 मुद्राओं का मुख्य ध्येय अष्ट मंगल के मांगलिक गुणों एवं शुभ भावों का जीवन में अवतरण करना है।