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________________ शोध प्रबन्ध सार ... 145 भाग-4 जैन विधि-विधानों का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन विषयक इस शोध प्रबन्ध का चतुर्थ एवं अन्तिम भाग मुद्रा विज्ञान पर आधारित है। विश्व की प्रसिद्ध प्राचीनतम सभ्यताओं में भारतीय संस्कृति का वैशिष्ट्यपूर्ण स्थान है। यह संस्कृति धर्म एवं अध्यात्म प्रधान, ऋषि एवं महर्षि प्रधान, साधना एवं उपासना प्रधान रही है। यही कारण है कि भारत अध्यात्म प्रधान देश कहलाता है। इस महिमा मण्डन का सम्पूर्ण श्रेय जाता है भारतीय ऋषि महर्षियों को। उन्हीं की कठोरतम साधना के परिणामस्वरूप आज हमारा देश आचार-विचार, तप-त्याग, अहिंसा और संयम जैसे मौलिक सिद्धान्तों के लिए जाना जाता है। इसी कारण आध्यात्मिक प्रगति के लिए भारत को आज आदर्श एवं प्रेरणा का स्रोत माना जाता है। पूर्वज साधकों ने समूची मानव जाति के निःश्रेयार्थ नयी-नयी विद्याओं की खोज कर उन्हें आत्मसात किया। मुद्रा योग अध्यात्म साधकों की एक ऐसी ही महत्त्वपूर्ण खोज है। 'मुद् मोदने' धातु से निष्पन्न मुद्रा एक संस्कृत शब्द है। यह प्रसन्नता, आनंद, उल्लास, हर्ष आदि का सूचक है । मुद्रा शब्द की अनेक परिभाषाएँ प्राप्त होती है जिनका निष्कर्ष यही है कि आत्मिक गुणों को अनावृत्त करते हुए जो प्रवृत्तियाँ चैतसिक प्रसन्नता और अपूर्व आह्लाद देती है, वह मुद्रा है। संस्कृत कोश के अनुसार मोहर, छाप, पैसा (करन्सी) को मुद्रा कहा जाता है। अर्थशास्त्र के अनुसार कागज के नोट को भी मुद्रा माना जाता है। राजा या अधिकारी की सील भी मुद्रा नाम से पहचानी जाती है तो पूर्वकाल में अंगूठी को भी मुद्रा कहा जाता था। मुद्रा का एक अर्थ एक्शन भी है। हमारे शरीर में जितनी भी आकृतियाँ बनती है वह सभी मुद्रा ही है। नृत्यशास्त्रों में अंगों के संचालन को मुद्रा कहा जाता है। यह ध्यातव्य है कि अंग संकेत मानव की आदि भाषा है। देशकाल के अनुसार भाषा तो बदलती रहती है परन्तु शारीरिक प्रतिक्रियाएँ समान प्रभाव ही डालती है। किसी को मुँह बनाकर चिढ़ाने की मुद्रा अथवा क्रोध की उग्र मुद्रा संसार के किसी भी क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को समान रूप से ही प्रभावित करती है। दूरस्थ व्यक्ति को हाथ से बुलाने का संकेत, भूख प्रकट करने के लिए ग्रास
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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