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________________ 142...शोध प्रबन्ध सार कुंभ स्थापना, अधिवासना आदि पर विस्तृत जानकारी पाठक वर्ग की अपेक्षा से दी गई है। चौदहवाँ अध्याय प्रतिष्ठा विधानों के अभिप्राय एवं रहस्यों से सम्बन्धित है। इस अध्याय में प्रतिष्ठा विधान सम्बन्धी विविध प्रासंगिक शंकाओं का समाधान किया है। __ प्रतिष्ठा एक विधि-विधान परक अनुष्ठान है। पूर्व अध्यायों में प्रतिष्ठा सम्बन्धी अनेकश: विधानों की चर्चा की गई है। उन विधि-विधानों में छुपे रहस्यों, गूढार्थों एवं उनके हेतुओं को जानना अत्यावश्यक है। ताकि उन क्रियाओं के साथ हमारा सम्बन्ध अन्तर्मन से जुड़ सके। कई बार उन विधानों का मूल हेतु न जानने के कारण अनेक विभ्रान्त मान्यताएँ भी जन मानस में स्थापित हो जाती है।जैसे कि जैन धर्म निवृत्ति प्रधान है। यहाँ मात्र वीतराग परमात्मा की आराधना करने का निर्देश है तब फिर प्रतिष्ठा आदि विधानों में देवी-देवताओं को आमंत्रण, उनका पूजन, द्रव्य अर्पण, बलिप्रक्षेपण आदि क्यों? इस विषय में लोग अनेक तर्क प्रस्तुत करते हैं। ऐसी ही अनेक शंकाएँ हैं। चर्चित अध्याय में इन विधानों के मार्मिक रहस्यों को शास्त्रीय निर्देश एवं प्रमाणों के आधार पर उजागर करने का प्रयास किया है। इस अध्याय में प्रतिष्ठा विधान विषयक रहस्यों को उजागर करते हुए जिनबिम्ब की पौंखण क्रिया क्यों? जिन प्रतिमा के हाथ में सरसव पोटली क्यों बांधते हैं? मीढल एवं मरडाशिंगी बांधने का प्रयोजन क्या है? प्रतिष्ठाचार्य द्वारा स्वर्ण कंकण पहनकर सकलीकरण क्यों? आदि अनेक प्रश्नों का समाधान किया गया है। इसके द्वारा ज्ञान पिपासु वर्ग क्रियाओं का मात्र अनुकरण न करते हुए उन्हें समझपूर्वक आचरित कर पाएंगे। पन्द्रहवें अध्याय में वर्तमान उपलब्ध प्रतिष्ठा कल्पों का समीक्षात्मक एवं ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत किया है। इसके माध्यम से प्रतिष्ठा विधि की प्राचीनता एवं उसमें आए कालगत परिवर्तनों का ज्ञान होता है। यदि अब तक उपलब्ध प्रतिष्ठा कल्पों का अध्ययन करें तो अनेक विचारणीय तथ्य परिलक्षित होते हैं। हर आचार्य ने अपने पूर्ववर्ती प्रतिष्ठाकल्प को अपना मुख्य आधार बनाया किन्तु इसके साथ उस समय की लौकिक प्रवृत्तियों एवं अन्य परम्पराओं में प्रचलित विधानों का भी इनमें समावेश किया। कभी उस समय की
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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