SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शोध प्रबन्ध सार ... 141 जिन मन्दिर सम्बन्धी विशिष्ट विधानों में अठारह अभिषेक एक महत्त्वपूर्ण विधान है। जिन प्रतिमा आदि को प्रासुक जल से सिंचित करना अभिषेक कहलाता है। अठारह अभिषेक का तात्पर्य भिन्न-भिन्न औषधि युक्त जल से जिनबिम्ब आदि का अठारह बार प्रक्षालन करना है। जैन मन्दिरों में जिनबिम्ब का अभिषेक परमात्मा के जन्माभिषेक के अनुकरण रूप किया जाता है। इन्द्र की भाँति विविध जलों द्वारा अभिषेक करना मनुष्य के लिए संभव नहीं है अत: वह अठारह प्रकार का जल ही प्रयुक्त करता है । अठारह अभिषेक करने के अनेक हेतु हैं जैसे- परमात्मा के जन्माभिषेक का अनुकरण, अशुद्धियों का निवारण, जिनालय, जिनबिम्ब एवं वातावरण की शुद्धि, मन्दिर सम्बन्धी आशातनाओं का शुद्धिकरण आदि। इन सभी की चर्चा बारहवें अध्याय में की गई है। इसी के साथ प्रस्तुत अध्याय में अठारह अभिषेक का आधुनिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन करते हुए अठारह अभिषेक क्यों ? अभिषेक के प्रकार, अठारह अभिषेक की परम्परा कब से, अभिषेक क्रिया सावद्य है या नहीं? अभिषेक क्रिया में प्रयुक्त औषधियों का प्रभाव प्रतिमा एवं अभिषेक कर्त्ता पर किस प्रकार पड़ता है? उनके द्वारा शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों का शमन किस प्रकार हो सकता है ? आदि को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। सुज्ञ स्वाध्यायी वर्ग इससे तत्सम्बन्धी अनेक छोटे-बड़े रहस्यों का ज्ञान कर पाएंगे। इस खण्ड के तेरहवें अध्याय में प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुख्य विधियों का बहुपक्षीय अध्ययन किया गया है। प्रतिष्ठा महोत्सव के दौरान अनेक प्रकार के विधि विधान सम्पन्न किये जाते हैं। प्रत्येक विधान का अपना स्वतंत्र महत्त्व है तथा स्वतंत्र रूप से प्रभाव भी संघ समुदाय पर पड़ता है । परंतु आज के समय में लोगों को न इस विषयक जानकारी है और न ही समय कि वह इन विधानों का सम्यक स्वरूप समझ सकें। कई बार जिज्ञासु वर्ग द्वारा तद्विषयक प्रश्न तो किए जाते हैं किन्तु सम्यक समाधान प्राप्त नहीं हो पाता । प्रस्तुत अध्याय में प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधियों का अनेक दृष्टियों से अनुशीलन किया गया है। मुख्य रूप से वर्तमान आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए प्रतिष्ठा सम्बन्धी प्रत्येक विधान जैसे खनन, शिलान्यास,
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy