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________________ 140...शोध प्रबन्ध सार आज के समय में व्यस्त जीवन शैली, आधुनिक विचारधारा एवं संकीर्ण मानसिकता को सुधारने के लिए पंच कल्याणक महोत्सव एक औषधि का कार्य करता है। व्यक्ति किस तरह अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर रहे, सुसंस्कारों की धारा को अखंडित रखे। इसके लिए पंचकल्याणक महोत्सव एक दिशाबोधक है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर दसवें अध्याय में पंचकल्याणक महोत्सव के विविध घटकों की चर्चा की है। इसके अन्तर्गत सर्वप्रथम तीर्थंकरों का परिचय देते हुए उनकी विविध पक्षीय चर्चा की है। तदनन्तर पंचकल्याण महोत्सव का वैशिष्ट्य बतलाने हेत् पाँचों कल्याणकों की विशद चर्चा की है। कौनसा कल्याणक क्यों, कब और कैसे? ये कल्याणक कौन, किस प्रकार मनाते हैं? एवं इन्हें मनाते हुए क्या भावना करनी चाहिए? इसकी चर्चा की है। इसके बाद पाँचों कल्याणकों की उपादेयता एवं महोत्सव में विभिन्न पात्रों द्वारा क्या भाव किए जाने चाहिए इसका निरूपण किया गया है। जिससे पंचकल्याणक महोत्सव जन कल्याण में हेतभूत बन सकें। __ग्यारहवें अध्याय में प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप बताया गया है। विधि की महत्ता को सर्वत्र सर्वोपरि स्वीकारा गया है। विधि का आलम्बन लिए बिना कोई भी कार्य सम्यक रूप से पूर्ण नहीं हो सकता, एक छोटा सा सामान्य कार्य हो तो उसे भी सविधि करना पड़ता है। उसकी विधि में कहीं भी हेर-फेर या बदलाव उसे कुछ से कुछ बना सकता है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर जैनाचार्यों ने प्रत्येक कार्य का विधिवत निरूपण किया है। फिर चाहे वह नित्य आराधना सम्बन्धी प्रतिक्रमण आदि क्रियाएँ हो या फिर विशेष रूप में आयोजित पूजा, प्रतिष्ठा, उपधान आदि विधान हो। सभी की विधियों का निरूपण किया गया है। प्रतिष्ठा के सम्बन्ध में अथ से इति तक अनेकशः विधियाँ प्राप्त होती है। इस अध्याय में प्रतिष्ठा को विधियुक्त अनुष्ठान सिद्ध करते हुए तत्सम्बन्धी शास्त्रीय विधियाँ बताई गई है। इसमें खात मुहूर्त, कूर्म प्रतिष्ठा, शिलान्यास, कुंभ स्थापना, जवारारोपण, अठारह अभिषेक, गृह मन्दिर निर्माण, वज्रलेप, मूर्ति विसर्जन, ध्वजा प्रतिष्ठा आदि 44 विधियों का निरूपण किया है जिससे उन विधियों के सम्यक स्वरूप का बोध हो सकें।
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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