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________________ शोध प्रबन्ध सार ...139 जिनमन्दिर की गिरती छाया का शुभाशुभ फल आदि अनेक विषयों को उजागर किया गया है। जैन शास्त्रकारों ने हर विषय की चर्चा बहुत ही सूक्ष्म रूप से की है। जिनप्रतिमा भरवाना एक मंगलकारी अनुष्ठान माना गया है। उसके बाद भी उसके शुभ परिणामों को अधिक वर्धित करने हेतु किसे, कौन से तीर्थंकर की प्रतिमा भरवानी चाहिए इसकी चर्चा हमें जैन वाङ्गमय में प्राप्त होती है। जब भी किसी नगर में जिन मन्दिर निर्माण हेतु विचार किया जाता है तब सर्वप्रथम यह सुनिश्चित किया जाता है कि मन्दिर के मूलनायक कौनसे तीर्थंकर होंगे? मूलनायक के नाम से ही मन्दिर का नाम प्रसरित होता है। प्रतिष्ठा कल्पों के अनुसार प्रतिमा स्थापना कर्ता की जन्मराशि एवं नक्षत्र आदि से तीर्थंकर की नाम राशि का मिलान करना चाहिए। मन्दिर में मूलनायक का स्थान वही होता है जो नगर में राजा का होता है। राशि के अनुसार प्रतिमा स्थापित करने से नगर में किसी प्रकार का अनिष्ट उपद्रव नहीं होता। नगरजनों के मन में परमात्मा के प्रति अहोभाव उत्पन्न होते हैं। सर्वत्र आनंद एवं मंगल की स्थापना होती है। यहाँ प्रश्न हो सकता है कि वीतरागी तीर्थंकर किसी के लिए कम या अधिक लाभकारी कैसे हो सकते हैं? उनके हृदय में तो सभी के लिए समभाव की स्थिति है। __ यथार्थत: तीर्थंकर प्रतिमा कम या अधिक लाभ नहीं करती। संसारी जीव के ग्रह, नक्षत्र आदि उसे प्रभावित करते हैं। जिस तीर्थंकर से उसके अधिक गुण मिलते हैं वह व्यावहारिक स्तर पर उसके लिए अधिक लाभकारी सिद्ध होती है। संसारी प्राणी लाभ-हानि को अधिक महत्त्व देता है। इसी कारण जैनाचार्यों ने राशि मिलान का विधान किया है। प्रस्तुत नौवें अध्याय में किसे कौनसी प्रतिमा भरवानी चाहिए? इसका प्रामाणिक वर्णन किया है। दसवें अध्याय के द्वारा अरिहन्त परमात्मा के पाँच कल्याणकों के अतिशय आदि का ज्ञान होता है तथा परमात्मा के प्रति अन्तरंग अहोभाव उत्पन्न होते हैं। भक्त और भगवान के बीच हमेशा एक विशेष सम्बन्ध रहा है। भगवान का जीवन एवं वर्तन भक्त के लिए सदा आदर्श रूप रहा है। उनके जीवन घटनाओं से प्रेरित होकर ही भक्त अपने जीवन को एक नई दिशा देता है।
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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