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________________ शोध प्रबन्ध सार...137 है। इसी के साथ जिनालय का शास्त्रोक्त माहात्म्य दर्शाते हुए जिनालय एवं जिनबिम्ब निर्माण के लाभ, सुप्रतिष्ठा के परिणाम आदि की चर्चा की है। इस वर्णन के माध्यम से जिन्दगी में शान्ति पाने के लिए इधर-उधर भटक रहे लोगों को जिनमन्दिर एवं जिनप्रतिमा की तेजस्विता और आलौकिक शान्ति का ज्ञान होगा। जिनमन्दिर में विराजित प्रशान्त मुख मुद्रा युक्त तेजस्वी जिन प्रतिमा का मनोयोगपूर्वक किया गया ध्यान एवं दर्शन हर प्रकार की समस्या का निदान कर सकता है। केवल आवश्यकता है उस शक्ति के प्रति श्रद्धा रखने की । समय को सबसे बलवान माना गया है। इसीलिए जैन आगमकार कहते हैं- "कालं काले समायरे” समय के अनुसार आचरण करना चाहिए। प्रत्येक क्रिया करने का निश्चित समय होता है और उस काल में करने पर ही वह क्रिया सर्वाधिक लाभकारी होती है। सैकेंड के भी आंशिक भाग जितने अंतर के कारण Olympic Medal को हारने वाला व्यक्ति समय की मूल्यवत्ता को जानता है । ज्योतिष शास्त्र में मुहूर्त्त आदि की विचारणा में कुछ सैकेंड का फेर बदल सम्पूर्ण प्रभाव को ही बदल देता है। जिनमन्दिर सकल संघ के अभ्युदय, शान्ति एवं मंगल में हेतुभूत बनता है। अतः उसके निर्माण सम्बन्धी क्रियाओं में मुहूर्त्त आदि सम्बन्धी विचार करना परमावश्यक है। पाँचवें अध्याय में मन्दिर निर्माण से सम्बन्धित खनन, शिलास्थापना, वेदी निर्माण, मंडप निर्माण, किवाड़ स्थापना, जिनप्रतिमा निर्माण, प्रतिष्ठा आदि प्रधान क्रियाओं की विवेचना करते हुए तद्योग्य आवश्यक मुहूर्त्त की चर्चा की गई है। छठें अध्याय में जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि बताई गई है। एक मन्दिर का निर्माण हजारों वर्षों का इतिहास लिखता है। जिनमन्दिर निर्माण कोई सामान्य बिल्डिंग या गृह निर्माण का कार्य नहीं है कि उसे इंजिनियर को कोन्ट्रेक्ट पर दे दिया जाए। आज एक घर बनाने से पहले व्यक्ति अनेक लोगों की सलाह लेता है ताकि वह सुंदर एवं सुव्यवस्थित गृह निर्माण कर सकें। तब जिनमन्दिर के निर्माण में कितनी सावधानी की आवश्यकता हो सकती है ? गीतार्थ जैन आचार्यों ने इस सम्बन्ध में बहुत ही सूक्ष्म वर्णन किया है। प्रस्तुत अध्याय में सर्वप्रथम जिनालय निर्माण सम्बन्धी पाँच मुख्य द्वारभूमिशुद्धि, दलशुद्धि, भृतकानति संधान, स्वाशयवृद्धि और यतना की चर्चा की
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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