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________________ 126... शोध प्रबन्ध सार हेतु उसके अर्थ, महत्त्व, प्रयोजन, तत्सम्बन्धी जनधारणा, विविध शंकाओं एवं विधियों का वर्णन किया है। इसी के साथ इसमें हर पूजा विषयक सावधानियाँ एवं उस समय करने योग्य भावों का भी चिंतन किया है। यह अध्याय अष्टप्रकारी पूजा का सारभूत परिचय करवाता है। तृतीय अध्याय में द्रव्य पूजा का सम्पूर्ण वर्णन करने के बाद चतुर्थ अध्याय में भाव पूजा के विविध घटकों की चर्चा की है। ‘भावना भव नाशिनी' यह छोटा सा पद भावों की महत्ता का बहुत ही सुंदर विवेचन करता है। भावों के आधार पर ही जीव निगोद से मोक्ष की यात्रा करता है। भाव जगत का परिशोधन करते हुए मरुदेवी एवं बाहुबली ने मोक्ष की प्राप्ति की। जिस पूजा में भावों की प्रधानता हो वह भाव पूजा है। जिनस्तुति, चैत्यवंदन आदि का समावेश भाव पूजा में ही होता है । वर्णित अध्याय में भाव पूजा के मननीय पहलुओं पर चिंतन करते हुए तीन प्रकार के चैत्यवंदन, चैत्यवंदन विधि के विविध लाभ, भाव पूजा से पूर्व इरियावहियं सूत्र क्यों ? चैत्यवंदन विधि की पारमार्थिक उपादेयता, परमात्मा के समक्ष स्तुति, स्तवन आदि क्यों बोलना ? स्तवन कैसा हो? उसके प्रभाव आदि विषयों का विवरण प्रस्तुत किया है। पंचम अध्याय जिनमन्दिर विषयक आशातनाओं से सम्बन्धित है। आशातना जैन पारिभाषिक शब्द है। जिस कार्य के द्वारा आत्मा का निश्चित रूप से विनाश हो वह क्रिया आशातना कहलाती है। हम जिनमन्दिर कर्म निर्जरा हेतु जाते हैं परन्तु कई बार अविनय, अज्ञानता आदि के कारण आराधना के स्थान पर व्यक्ति विराधना कर लेता है। इस अध्याय में उन्हीं आशातनाओं से परिचित करवाने हेतु आशातना का सामान्य परिचय देते हुए चैत्यवंदन महाभाष्य में वर्णित पाँच आशातनाएँ तथा जिनमन्दिर सम्बन्धी 10, 40, 50, 84 आशातनाओं का उल्लेख किया है। इसी के साथ मन्दिर में साधर्मिक वर्ग, कर्मचारी आदि के साथ किस प्रकार व्यवहार करना चाहिए, पदाधिकारियों को क्या विवेक रखना चाहिए आदि की चर्चा भी की गई है। किसी भी कार्य की सिद्धि में उसमें प्रयुक्त सामग्री महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। साधन की उपस्थिति में ही संपूर्ण एवं सफल साधना संभव है। प्रत्येक कार्य के लिए कुछ आवश्यक साधन सामग्री का विधान है। जिनपूजा में सहयोगी सामग्री को हम जिनपूजा उपकरण के रूप में जानते हैं। इसमें भी जो वस्तुएँ मात्र
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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