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________________ शोध प्रबन्ध सार ...127 एक बार प्रयोग की जाती है वह उपादान कहलाती है। षष्ठम अध्याय में जिनपूजा उपयोगी उपकरणों का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनका ऐतिहासिक विकास क्रम दर्शाया गया है। इसके माध्यम से विविध उपकरणों का सम्यक स्वरूप ज्ञात हो सकेगा। सप्तम अध्याय जिनपूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं उसके अनुभूतिजन्य रहस्यों को प्रस्तुत करता है। जिनपूजा एक त्रिकाल प्रासंगिक क्रिया है। हर काल में इसकी विद्यमानता रही है। देश, काल, परिस्थिति के अनुसार इसमें अनेक परिवर्तन भी आए। प्रस्तुत अध्याय में ऐसे ही विविध विषयों की चर्चा की है। इस अध्याय के अन्तर्गत विविध दृष्टियों से जिनपूजा तनावमुक्ति का उपाय किस तरह? आध्यात्मिक उत्कर्ष आदि में जिनपूजा की आवश्यकता, जिनपूजा एक रहस्यमय अभियान कैसे? लौकिक परिप्रेक्ष्य में तिलक की महत्ता, घंटनाद-शंखनाद का प्राकृतिक स्वरूप एवं कारण आदि अनेक रहस्यात्मक तथ्यों को उजागर किया है। इसके बाद त्रिकाल पूजा के विविध घटकों पर प्रकाश डालते हुए उसका बहुपक्षीय अध्ययन किया है। किसको, किस प्रकार परमात्मा के दरबार में जाना चाहिए? इसका शास्त्रीय उल्लेख करते हुए इसमें विविध परिप्रेक्ष्यों से प्रतिमा पूजन का उद्देश्य बताया है। तदनन्तर मानव जीवन में जिनपूजा की प्रमुखता दर्शाते हुए भाव पूजा के माहात्म्य को प्रकाशित किया है। इसी के साथ द्रव्य पूजा एवं भाव पूजा से सम्बन्धित अनेक पक्षों को उजागर किया है, जिससे जिनपूजा की सूक्ष्मता एवं उसके अनेकानेक लाभों का परिज्ञान हो सकें। अष्टम अध्याय में जिनपूजा के शास्त्रोक्त प्रमाण प्रस्तुत किए हैं। कई लोग जिनपूजा विषयक अनेक प्रकार की शंकाएँ एवं तर्क प्रस्तुत करते हैं। काल सापेक्ष जिनपूजा में अनेक प्रकार के परिवर्तन आए। कई परिवर्तन आवश्यक थे तो कुछ अनावश्यक तत्त्व भी प्रविष्ट हुए। उसी के विरोध में मूर्ति पूजा का विरोधी वर्ग उत्पन्न हुआ। आज उनके द्वारा जिनपूजा विरोधी अनेक पक्ष रखे जाते हैं। आडंबरों का विरोध करते-करते वे जिनपूजा के ही विरोधी हो गए। ऐसे ही अनेक पक्षों का समाधान प्रस्तुत अध्याय में किया है। आलम्बन की महत्ता एवं उसके बदलते स्वरूप की चर्चा करते हुए इसमें
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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