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________________ 106... शोध प्रबन्ध सार पर आधारित एवं पूर्ण वैज्ञानिक है। अन्तर्मुखी साधना हेतु समभाव की प्राप्ति परमावश्यक है। किसी भी साधक का सर्वोच्च लक्ष्य समत्व दशा को उपलब्ध करना ही होता है। टीकाकार शान्त्याचार्य के अनुसार विरत व्यक्ति ही सामायिक साधना कर सकता है क्योंकि सावद्य योगों से निवृत्त होने की स्थिति में ही 'आत्मवत् सर्व भूतेषु' जैसे महान विचारों का आविर्भाव होता है अतः समता अध्यात्म क्षेत्र में प्रवेश करने का प्रथम सोपान है। आत्मतुला सिद्धान्त को चरितार्थ करना ही सामायिक साधना है। जो व्यक्ति समत्व गुण का अनुभव कर चुका है वही पूर्णता के शिखर पर अवस्थित वीतराग के गुणों का यथार्थ संस्तवन एवं संकीर्तन कर सकता है। सद्गुण प्राप्ति की दिशा में प्रस्थान करने हेतु ही दूसरे क्रम पर चतुर्विंशतिस्तव को रखा गया है। प्रमोद भाव एवं गुण ग्राहकता का विकास होने पर ही व्यक्ति चारित्रवान एवं गुणी पुरुषों के चरणों में अपना मस्तक झुका सकता है। श्रद्धाभिसिक्त होकर देव तत्त्व एवं गुरु तत्त्व को स्वीकार कर सकता है। इसी हेतु तीसरे स्थान पर वंदन आवश्यक है। वंदन करने वाला व्यक्ति निर्मल एवं सरल होता है । सरल व्यक्ति ही कृत दोषों की आलोचना कर सकता है अतः वंदन के पश्चात प्रतिक्रमण आवश्यक का निरूपण है। पंडित सुखलालजी के अनुसार आलोचना गुरु के समक्ष की जाती है। जो व्यक्ति गुरु को वन्दन नहीं करता वह आलोचना का अधिकारी ही नहीं है अतः वन्दन के बाद प्रतिक्रमण आवश्यक का स्थान है। अपराध निवेदन करने पर चित्त शुद्धि तो हो जाती है किन्तु उन दोषों से मुक्ति पाने के लिए तन एवं मन की स्थिरता होना आवश्यक है और वह कायोत्सर्ग द्वारा ही संभव है। साधक चित्तशुद्धि किए बिना कायोत्सर्ग करता है उसकी चेतना में श्रेष्ठ ध्येय के विचार कभी जागृत नहीं होते, वह अनुभूत विषय का ही चिन्तन करता रहता है अतः प्रतिक्रमण के बाद कायोत्सर्ग आवश्यक को प्रमुखता दी है। जब व्यक्ति के जीवन में स्थिरता और एकाग्रता सध जाती है तभी वह अकरणीय का प्रत्याख्यान कर सकता है। प्रत्याख्यान उत्तम प्रकार का आवश्यक है। उसके लिए विशिष्ट चित्त शुद्धि और अगणित उत्साह होना अनिवार्य है। यह
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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