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________________ शोध प्रबन्ध सार ...105 प्रथम आवश्यक के रूप में सामायिक आवश्यक की व्याख्या की गई है। श्रमण जीवन में जहाँ सामायिक प्रथम चारित्र है, वहीं गृहस्थ जीवन के बारह व्रतों में यह पहला शिक्षा व्रत है। सामायिक का अर्थ मात्र एक स्थान पर 48 मिनट तक बैठना नहीं है । यह तो एक ऐसी क्रिया है जो साधक को बाह्य प्रपंचों से दूर हटाकर स्वयं में स्थिर करती है। दूसरा चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक मुख्य रूप से अरिहंत परमात्मा का नाम स्मरण है। यह साधक में परमात्म गुणों को प्रकट करता है। तीर्थकरों के नाम आलम्बन से स्वयं में तीर्थंकरत्व जागृत होता है। प्रथम आवश्यक के रूप में समत्व गुण से अभिसिंचित आत्मभूमि पर निर्वाण पद रूपी वृक्ष का बीजारोपण करता है। तीसरा वंदन आवश्यक लघुता गुण को प्रकट करते हुए विनय एवं समपर्ण भाव को जागृत करता है। इससे अहंकार का मर्दन एवं ऋजु भव उत्पन्न होता है। यर्थाथतः ऋजुता, लाघवता, सरलता आदि आत्म गुणों का जागरण ही शुद्ध स्वरूप प्राप्ति का मुख्य सोपान है। चौथा प्रतिक्रमण आवश्यक पापों का स्मरण कर उनसे पीछे हटने की क्रिया है। जब साधक में समभाव दशा विकसित होती है तब विनय आदि गुणों के माध्यम से व्यक्ति संसार राग से हटकर आत्म राग के मार्ग पर अग्रसर होता है। स्व दोषों को परिष्कृत कर आत्म स्वरूप में निखार लाता है। पाँचवें कायोत्सर्ग आवश्यक की साधना शरीर के प्रति ममत्व एवं आसक्ति न्यून करने में सहायक बनता है। को छठवाँ प्रत्याख्यान आवश्यक शल्य रहित आत्म अवस्था के रक्षण हेतु बांध का कार्य करता है तथा जीव को पुनः उन्मार्ग पर प्रवृत्त होने से बचाता है। अल्प शब्दों में सारभूत तथ्य कहें तो षडावश्यक की साधना व्यक्ति में सद्गुणों का सृजन करते हुए आत्मानंदी जीवन जीने का मार्ग बताती है । हमारे पूर्वाचार्यों ने इसके महत्त्व को उजागर करने हेतु कई नियुक्तियाँ, चूर्णियाँ एवं भाष्य आदि इस विषय पर गुम्फित किये। षडावश्यकों का क्रम वैशिष्टय - आवश्यक छ: प्रकार के कहे गए हैं- 1. सामायिक 2. चतुर्विंशतिस्तव 3. वंदन 4. प्रतिक्रमण 5. कायोत्सर्ग और 6. प्रत्याख्यान। आवश्यक साधना का यह क्रम कार्य-कारण भाव की श्रृंखला
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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