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________________ शोध प्रबन्य सार ...63 मासकल्प आदि का पालन करते हुए विहार करने का स्पष्ट उल्लेख है। वर्णित अध्याय में विहारचर्या सम्बन्धी विधि-नियमों पर प्रकाश डालते हुए सामान्य रूप से विहार का अर्थ, उसके प्रकार, विहार चर्या की आवश्यकता एवं प्रयोजन, पाद विहारी मुनि के प्रकार, एकाकी विहार निषेध के कारण, एकाकी विचरण सम्बन्धी दोष, गीतार्थ मुनियों के एकाकी विहार के हेतु आदि अनेकशः विधि नियमों की सम्यक विवेचना की गई है। पाँच समिति साधु चर्या के निर्दोष पालन का अभिन्न अंग है। इस आचार विधि के अन्तर्गत उच्चार प्रस्रवण परिष्ठापन नामक पाँचवीं परिष्ठापनिका समिति का विधियुक्त पालन किया जाता है। चतुर्दशवें अध्याय में पाँचवीं परिष्ठापनिका समिति की चर्चा स्थण्डिल विधि के रूप में की गई है। इसमें स्थण्डिल के अर्थ को स्पष्ट करते हुए मलमूत्र आदि का विसर्जन करने हेतु 1020 प्रकार की स्थण्डिल भूमियों का प्रतिपादन किया है। उनमें मात्र एक प्रकार की भूमि ही शुद्ध बताई गई है। इसी के साथ स्थण्डिल भूमि के अन्य प्रकार, आपात युक्त स्थण्डिल भूमि, संलोक युक्त स्थंडिल भूमि, अशुद्ध स्थण्डिल भूमि के दोष, स्थण्डिल गमन का काल, भूमि निरीक्षण, स्थण्डिल भूमि के कृत्य आदि अनेक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। ____ इस कृति का अन्तिम अध्याय महापरिष्ठापनिका विधि अर्थात अन्तिम संस्कार विधि से सन्दर्भित है। मृत्यु संसारी प्राणी के लिए एक अटल सत्य है। मृत्यु का भय दुनिया में सबसे बढ़कर है किन्तु जो साधक संलेखना-समाधि द्वारा जीवन को सफल कर देता है वह आनंद मनाते हुए मृत्यु का वरण करता है। यह जन्म-मरण की परम्परा का विच्छेदक है। - शास्त्रीय विधि पूर्वक मृत श्रमण देह का परिष्ठापन करना महापरिष्ठापनिका कहलाता है। पंचदसवें अध्याय में अन्तिम संस्कार विधि का निरूपण है। ___पन्द्रह अध्यायों में विभाजित इस खण्ड लेखन का मूल हेतु श्रमणाचार के विविध पक्षों को जन सामान्य में उजागर करना है। श्रमणाचार जिनशासन का हृदय है। जैसे स्वस्थ एवं पूर्ण जीवन के लिए हृदय का स्वस्थ रहना आवश्यक है। वैसे ही समृद्ध एवं जीवंत जिनशासन के लिए श्रमणाचार का निराबाध एवं
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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