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________________ 62...शोध प्रबन्ध सार प्रस्तुत अध्याय में वसति सम्बन्धी विधि-नियमों की चर्चा करते हुए साधुसाध्वी के लिए कौनसी वसति क्यों वर्जित मानी गई है, मुनियों के लिए निषिद्ध स्थान, वसति दूषित होने के कारण, शुद्ध वसति की उपादेयता, निषिद्ध वसति में रहने से लगने वाले दोष, वसति प्रवेश एवं बर्हिगमन विधि, ब्रह्मचर्य पालन में वसति की उपयोगिता आदि अनेक तथ्यों को उद्घाटित किया है। जो उपकरण मुनि के लिए सोने-बैठने आदि में उपयोगी होते हैं उन्हें संस्तारक कहा जाता है। इस दृष्टि से पट्टा, चौकी, फलक, दर्भादिक का बिछौना आदि संस्तारक कहलाते हैं। दशम अध्याय में साधु-साध्वी के लिए बिछाने योग्य पट्टा, फलक, तृण आदि ग्रहण करने सम्बन्धी विधि-नियमों एवं निर्देशों का वर्णन करते हए इसकी औत्सर्गिक और वैकल्पिक विधियाँ बताई गई है। ___ एकादश अध्याय में शय्यातर सम्बन्धी विधि-नियमों की चर्चा की गई है। आगमिक परिभाषा के अनुसार जो गृहस्थ साधु-साध्वी को स्थान या उपाश्रय प्रदान करता है, वह शय्यातर कहलाता है। शय्या दान के कारण वह भव सागर से तिर जाता है इस कारण भी वह शय्यातर कहलाता है। उपरोक्त अध्याय में शय्यातर का अर्थ, शय्यातर-अशय्यातर कब और कैसे, शय्यातर के विकल्प, शय्यातर पिण्ड के प्रकार, उसके निषेध के कारण, शय्यातर विधि की उपादेयता आदि विविध विषयों पर चर्चा की गई है। भारतीय परम्परा में वर्षावास का अत्यंत महत्त्व है। यह आध्यात्मिक जागृति का महापर्व माना जाता है। इसके माध्यम से स्व-पर साधना का उत्तम अवसर प्राप्त होता है। यही कारण है कि वर्षावास मुनिचर्या का अनिवार्य अंग है। द्वादशवें अध्याय में वर्षावास सम्बन्धी विविध पहलुओं पर विचार किया गया है। इसमें वर्षावास का अर्थ विश्लेषण करते हुए मुख्यतया वर्षाकाल की स्थापना कब और कैसे, वर्षावास में विहार का निषेध क्यों, वर्षावास योग्य स्थान कैसा हो, वर्षावास का ऐतिहासिक आधार क्या है, विविध संदर्भो में वर्षावास की प्रासंगिकता, वर्षा योग धारण एवं समापन विधि इत्यादि विषयों पर शास्त्रीय चर्चा की गई है। त्रयोदसवाँ अध्याय विहार चर्या से सम्बन्धित है। विहार चर्या जैन मुनियों का एक आवश्यक कृत्य है। आगम शास्त्रों में शारीरिक शक्ति के अनुसार
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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