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________________ शोध प्रबन्ध सार ...61 प्रतिलेखन कब, कितनी बार, किस विधि पूर्वक किया जाना चाहिए इसका विवेचन किया है। इसी के साथ इस अध्याय में प्रतिलेखना के आवश्यक नियम, प्रात:कालीन एवं सायंकालीन प्रतिलेखना विधि, प्रतिलेखना सम्बन्धी विधि-विधानों के रहस्य एवं प्रतिलेखना यंत्र आदि भी दिए गए हैं जिससे श्रावक एवं श्रमण वर्ग प्रतिलेखना जैसे सूक्ष्म विषय से भलीभाँति परिचित हो सकें। इस खण्ड के सप्तम अध्याय में वस्त्र ग्रहण सम्बन्धी विधि-नियमों की चर्चा की गई है। वस्त्र मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकता है। शरीर, शील एवं संयम रक्षार्थ, लज्जा निवारणार्थ तथा शीत आदि परिषहों के उपशमनार्थ मुनि जीवन में वस्त्र ग्रहण करना आवश्यक हो जाता है। शरीर विभूषा या मन: तोष के लिए वे वस्त्र धारण नहीं करते । सात्विक एवं निर्दोष वस्त्र ही मुनि के लिए कल्प्य है। ऐसे अनेक विषयों की चर्चा वर्णित अध्याय में की गई है। इस अध्याय में वस्त्र ग्रहण विधि एवं गवेषणा पूर्वक वस्त्र ग्रहण के हेतु बता हुए वस्त्रों का ग्रहण किस विधि पूर्वक, कितनी संख्या एवं परिमाण में करें, वस्त्र ग्रहण के प्रयोजन, आधुनिक संदर्भों में उनकी उपादेयता, वस्त्र ग्रहण की प्रासंगिकता आदि विषयों पर चर्चा की गई है। मुनि जीवन चर्या का एक आवश्यक अंग है पात्र। जब तक साधक दृढ़ मनोबल पूर्वक करपात्री की भूमिका पर नहीं पहुँच जाता, तब तक उसे पात्रक की आवश्यकता रहती है। अष्टम अध्याय में पात्र ग्रहण सम्बन्धी विधि नियमों की चर्चा करते हुए पात्र के प्रकार, पात्र की गवेषणा के हेतु, क्षेत्र गमन सीमा, पात्र ग्रहण विधि, पात्र रखने की उपयोगिता आदि विधि नियमों का निरूपण किया है। इस खण्ड का नवम अध्याय वसति विधि से सम्बन्धित है। जिस प्रकार जीवन निर्वाह हेतु आहार आवश्यक है उसी प्रकार श्रान्त शरीर को विश्राम देने हेतु एवं धार्मिक आराधना आदि के लिए स्थान की आवश्यकता होती है। साधुसाध्वी के रहने योग्य स्थान वसति कहलाता है। यह अनुभव सिद्ध है कि सदाचार के सम्पर्क से सम्यक दर्शन आदि की शुद्धि बढ़ती है तथा कुत्सित आचार वालों के सम्पर्क से सद्गुण नष्ट हो जाते हैं। जैसे गुलाब के संसर्ग से जल सुगंधित एवं शीतल हो जाता है वहीं अग्नि का संयोग उस जल को उष्ण और विरस बना देता है वैसे ही मुनि के जीवन पर शुद्ध-अशुद्ध वसति का असर पड़ता है।
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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