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________________ 58... शोध प्रबन्ध सार एक Direct connection स्थापित होता है अर्थात स्व स्वरूप का बोध हो जाता है। यह अनुभूतिजन्य तथ्य है कि निर्भ्रान्त एवं श्रद्धा पूर्ण उपासना परम लक्ष्य को अवश्यमेव प्राप्त करवाती है। मुनि जीवन साधना, आराधना और उपासना के संयोग का रस निष्पादन है। तीनों के संगम की फलानुभूति है । उपासना जहाँ भूमि शोधन का कार्य करती है वहाँ साधना बीजारोपण का एवं आराधना फसल प्राप्ति के तुल्य है। चाहे श्रावकाचार हो या श्रमणाचार इन तीनों का आश्रय लेना अत्यावश्यक है। वर्तमान युग में इस शोध कार्य की आवश्यकता - प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में श्रमणाचार से सम्बन्धित विधि-विधानों का तुलनात्मक, समीक्षात्मक एवं ऐतिहासिक पक्ष प्रस्तुत किया है। साथ ही इनके प्रयोजन आदि उपयोगी तथ्यों को भी स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। द्वितीय भाग का यह दूसरा उपखण्ड है। प्रथम उपखण्ड मुनि जीवन में प्रवेश पाने की क्रिया - प्रव्रज्या का स्वरूप स्पष्ट रूप से समझने के बाद द्वितीय उपखण्ड में श्रमण जीवन की सम्पूर्ण चर्या का विवेचन किया है। प्रव्रज्या इच्छुक साधकों को अपनी नियम मर्यादाओं का ज्ञान हो तो वे शुद्ध रूप से निरतिचार संयमी जीवन का परिपालन कर सकते हैं। श्रमणाचार के विविध पक्षों को ध्यान में रखते हुए इस कृति को पन्द्रह अध्यायों में निम्न प्रकार गुम्फित किया है। प्रथम अध्याय में श्रमण शब्द का अर्थ विश्लेषण करते हुए श्रमण का स्वरूप एवं उसके विविध पक्षों को उजागर किया है। जैन विचारणा के अनुसार श्रमण वह है जो समत्व भाव की साधना के द्वारा अपनी वृत्तियों को शमित करने का प्रयत्न करता है। आगमों में कहा गया है जो साधक शरीर से आसक्ति नहीं रखता। किसी प्रकार की सांसारिक कामना नहीं करता। हिंसा, झूठ, मैथुन, परिग्रह आदि विचारों से दूर रहता है । राग- -द्वेष आदि कषाययुत कर्मादान एवं आत्म पतन के हेतुओं से निवृत्त रहता है । इन्द्रियों का विजेता एवं मोक्ष मार्ग का सफल यात्री है। मोह ममत्व से रहित है वही श्रमण है। श्रमण की इन्हीं विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए प्रथम अध्याय में श्रमण शब्द का अर्थ विश्लेषण, श्रमण के प्रकार, श्रमण जीवन का महत्त्व, श्रमण के सामान्य-विशिष्ट गुण, श्रमण की दैनिक एवं ऋतुबद्ध चर्या, श्रमण
SR No.006238
Book TitleJain Vidhi Vidhano Ka Tulnatmak evam Samikshatmak Adhyayan Shodh Prabandh Ssar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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