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________________ ३८ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य - एक प्रध्ययन श्राने का कारण पूंछा । सागरदत्त ने वहाँ आने का प्रपना प्रयोजन बताया कि वह सुदर्शन के साथ अपनी पुत्री मनोरमा का विवाह करना चाहता है। हर्षित मन से विवाह की स्वीकृति दे दी और एक दिन शुभ वेला में मनोरमा का विवाह हो गया । वृषभवास ने सुदर्शन मोर चतुर्थ सर्ग एक बार उस नगर के उपवन में एक मुनि श्राये । चम्पापुरी के नर-नारी उनके दर्शन करने के लिए गये। सेठ वृषभदास भी अपने परिवार सहित गया । मुनि को प्रणाम करके उसने उनसे धर्म का स्वरूप पूछा। मुनि ने आशीर्वाद देकर धर्म एवं अधर्म का स्वरूप और भेद समझाया। मुनि की प्रमृतवर्षिणी वाणी को सुनकर सेठ वृषभदास का सारा मोह समाप्त हो गया और वह सब कुछ त्यागकर मुनि बन गया । मुनि की वाणी और पिता के प्राचरण से प्रभावित सुदर्शन ने भी मुनिराज के समक्ष मुनि बनने की इच्छा प्रकट की । किन्तु उसने यह भी निवेदन किया कि मेरे हृदय में अपनी पत्नी मनोरमा के लिए अतिशय प्रीति है, जो मुझे मुनि बनने में बाधिका प्रतीत होती है । प्रतएव श्राप इससे भी मुक्त होने का उपाय बतायें । सुदर्शन की बात सुनकर मुनिराज ने कहा कि हे सुदर्शन, तुम दोनों के अतिशय प्रेम का कारण तुम दोनों का पूर्वजन्मकालीन संस्कार है । क्योंकि पहले जन्म में तुम और मनोरमा भील भीलनी थे । वह भील अगले जन्म में कुत्ता हुमा । एक जिनालय में मरने 'पश्चात् वही कुत्ता एक ग्वाले के यहाँ पुत्र रूप में जम्मा । एक बार उस ग्वाले के पुत्र ने एक सरोवर से एक सहस्रदल कमल तोड़ा । उसी समय आकाशवाणी हुई कि इस कमल का उपभोग तुम मत करो, तुम इसे ले जाकर किसी महापुरुष को प्रदान कर दो; जिसे सनकर वह बालक इन्हीं सेठ वृषभदास को, जो इस समय तुम्हारे पिता हैं, कमल भेंट करने की इच्छा से इनके पास माया । किन्तु इन्होंने वह कमल राजा को समर्पित करना चाहा और उस बालक को लेकर यह राजा के पास पहुंचे। पर सम्पूर्ण सन्दर्भ जानने पर राजा ने वह कमल जिन भगवान् को सेवा में समर्पित करना चाहा और सबको लेकर वह जिनमन्दिर में पहुंचे । वहाँ पहुँचकर राजा ने बड़ी घूम धाम के साथ वह कमल पुष्प ग्वाल बालक के ही हाथों द्वारा भगवान् जिनेन्द्र की सेवा में समर्पित कर दिया । इस घटना से प्रभावित होकर सेठ वृषभदास ने उस ग्वाल-बालक को योग्य समझकर अपने घर का सेवक बना लिया । एक दिन वह गोपबालक जंगल से सूखी लकड़ियाँ काट कर घर लौट रहा था। सर्दी का समय था । हिमपात हो रहा था । मागं में उसने एक साधु के दर्शन किये, जो एक वृक्ष के नीचे समाधिस्थ थे। उनकी स्थिति को दयनीय देखकर उसने विचार किया कि निश्चय ही इन्हें शीत सता रहा होगा। प्रतः उसने उनके 1
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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