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________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काण्य-प्रभ्थों के संक्षिप्त कथासार ३७ मुनि ने उन्हें प्राशीर्वाद दिया । तदनन्तर सेठ ने मुनि से निवेदन किया कि मेरी पत्नी जिनमति ने प्राज रात्रि में सुमेरु पर्वत, कल्पवृक्ष, सागर, निधूम-मग्नि श्रीर प्राकाशवारी विमान को क्रमशः पाँच स्वप्नों में देखा है। हम इस स्वप्नावली का फल जानने की इच्छा से प्रापके पास प्राये हैं । कृपया भाप हमें इन स्वप्नों का भिप्राय समझा दीजिए। सेठ जी की बात सुनकर मुनिराज बोले कि तुम्हारी पत्नी ने जो पाँच स्वप्न देखे हैं उनका तात्पर्य है कि यह योग्य पुत्र को जन्म देगी । स्वप्न में देखे गए सुमेरु, कल्पवृक्ष, सागर, निर्धूम-अग्नि प्रोर विमान से क्रमश: तुम्हारे पुत्र का धेयं, दानशीलता, रत्नबहुलता, कर्मों का नाश और देवों की प्रियपात्रता सूचित होती है। मुनि की बारणी सुनकर दोनों प्रति प्रसन्न हुए । तदनन्तर यथासमय जिनमति ने गर्भधारण किया, जिससे उसका सौन्दर्य प्रतिदिन वृद्धि को प्राप्त होने लगा। सेठ वृषभदास अपनी पत्नी को गर्भवती जानकर बहुत प्रसन्न हुआ और यत्नपूर्वक उसका संरक्षण करने लगा । तृतीय सगं समय प्राने पर एक दिन शुभमुहूर्त में जिनमति ने भूमण्डल को सुशोभित करने वाले पुत्र को जन्म दिया। सेवक से पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाकर वृषभदास प्रत्यधिक हंषित हुप्रा । हर्षातिशय के कारण उसने जिनेन्द्रदेव का पूजन किया धीर प्रत्यधिक दान दिया। घर में चारों मोर वृद्ध महिलाओं ने मंगल दीप प्रज्ज्वलित किये | वृषभदास ने प्रसूतिकक्ष में पहुँचकर अपनी पत्नी और पुत्र पर गन्धोदक छिड़का । जिनदर्शन के फलस्वरूप पुत्रप्राप्ति को स्वीकार करके सेठ ने अपने सुन्दर पुत्र का नाम सुदर्शन रखा । बालक अपनी मनोहर चेष्टाम्रों से घर के सभी लोगों के हवं में वृद्धि करने लगा । शैशवावस्था समाप्त होने पर कुमार सदर्शन को विद्याध्ययन के लिए गुरु के पास भेजा गया । शीघ्र ही माँ शारदा के अनुग्रह से वह सभी विद्यानों में पारंगत हो गया । धीरे-धीरे सुदर्शन युवा होने लगा । उसका सौन्दर्य प्रतिदिन बढ़ने लगा । एक दिन सागरदत्त नामक वैश्य की पुत्री मनोरमा भौर सुदर्शन ने जिनमन्दिर में पूजन करते समय एक दूसरे को देखा । तभी से दोनों परस्पर प्रेम करने लगे। कुछ दिनों के बीतने पर एक दिन सुदर्शन से उसके मित्रों ने उसकी उदासीनता का कारण पूँछा तो उसने उसे उच्चस्वर से गाने के फलस्वरूप हुई थकान कहकर टालना चाहा । किन्तु चतुर मित्र उसकी मनोव्यथा को समझ गये । धीरेधीरे यह वृत्तान्त सेठ वृषभदास के कानों में भी पड़ा । सेठ वृषभदास सुदर्शन के विषय में चिन्ता कर ही रहा था कि वहाँ मनोरमा के पिता सेठ सागरदत्त मा पहुॅचे। वृषभदास ने उनका यथोचित सत्कार किया और
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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