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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्यग्रन्यों के संक्षिप्त कथासार
३३ विचार किया कि पोड़ा प्रात्मा को नहीं, ज्ञान-रहित शरीर को कष्ट पहुंचाती है । समय-समय पर भगवान के ऐकमासिक और चातुर्मासिक उपवास भी चल रहे थे मात्मतत्त्व को जानकर, संसार को पापपंक से दूर करने के लिए, ग्रीष्म ऋतु के वंशाख मास की शुक्ला दशमी तिथि को भगवान् ने केवल-ज्ञान प्राप्त किया। इस समय उनके चार मुख सुशोभित होने लगे। उनके शरीर का प्रतिबिम्ब पड़ना बन्द हो गया। उनके अन्दर सभी विद्यानों का प्रवेश हो गया। इसी हर्षमय वातावरण में इन्द्र ने समवसरण नामक सभामण्डप का निर्माण किया। इसी समवसरण सभामण्डप में महावीर भगवान् ने मुक्तिमार्ग का उपदेश दिया।
त्रयोदश सगं समवसरण सभा के मध्य गन्धकुटी में स्थित सिंहासन पर भगवान महावीर अवस्थित थे। उस समय उनका मुखमण्डल अत्यन्त तेजस्वी लग रहा था। उनके शिर पर छत्रत्रय सुशोभित था। उस समय देवगण दुन्दुभि बजा रहे थे और भगवान् महावोर प्रपनी पवित्र वाणी से सबके कणंकहरों को अभिषिक्त कर
रहे थे।
भगवान् के इस दिव्य ऐश्वर्य से प्रभावित, वेद वेदांग का ज्ञाता इन्द्रभूति नामक ब्राह्मण वहां पाया। उसके मन में प्रभु का वैभव देखकर माश्चर्य हुआ । अपनी प्रज्ञानता के कारण वह मन ही मन तर्क-वितर्क करने लगा। अन्त में, वह बोला-'हे देव मुझे सत्य ज्ञान कराने की कृपा करो-और ऐसा कहकर वह उनके चरणों में गिर पड़ा।
__ भगवान् ने आषाढ़ को गुरुपूर्णिमा के दिन उसे सत्य, अहिंसा और त्याग का उपदेश दिया।
चतुर्दश सर्ग भगवान् महावीर के ग्यारह गणवर हुए-गोतम इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति पार्यव्यक्त सुधर्म, मण्डिक, मौर्यपुत्र, अकम्पित वीर, अचल, मेतार्य उपान्त्य श्रेष्ठ और प्रभास । इन सभी ने भगवान् के सन्देश का प्रसार किया। ये सभी गणपर अपनी शिष्य-परम्परा के साथ भगवान् महावीर के पास पहुँचे। भगवान् ने सबको उपदेश दिया एवं गौतम इन्द्रभूति के मन में उठ रहे सन्देहों का शमन किया। भगवान से प्रात्मतत्त्व के उपदेश को सुनकर इन्द्रभूतिं बहुत प्रभावित हुए।
तत्पश्चात् भगवान महावीर ने उन्हें ब्राह्मण के गुणों का ज्ञान कराया। भगवान् के पावन-वचनों से इन्द्रभूति का सारा कल्मष धुल गया। सभी गणधरपरिवारों का कल्याण हुमा। गणषरों को इस प्राध्यात्मिक उन्नति को जानकर अन्य लोग भी महावीर भगवान् की शरण में माने लगे । उस समवसरण सभा में सभी लोग पारस्परिक विरोष को भूलकर प्रात्मतत्त्व का चिन्तन करने में लीन हो गए।