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महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्य ग्रन्थों के संक्षिप्त कथासार ।
ग्यारहवें स्वप्न में तुमने समुद्र देखा है । उसका फल यह होगा कि तुम्हारा
पुत्र समुद्र के समान धोर-गम्भीर, नवनिधियों मोर केवल ज्ञान से उत्पन्न
नवलब्धियों का स्वामी होगा। बारहवें स्वप्न में हे रानी ! तुमने सुन्दर सिंहासन देखा है। उसका फल होगा
कि तुम्हारा पुत्र निरन्तर उन्नति को प्राप्त करने वाला, उत्तम-कान्ति
से युक्त और शिवराज्य के पद का अनुगामी होगा। तेरहवें स्वप्न में देव-सेवित विमान देखने का फल है कि तुम्हारा पुत्र देवतामों
से सेव्य, लोगों को मोक्ष दिलाने वाला पौर अति पवित्रारमा होगा। चौदहवें स्वप्न में हे रानी ! तुमने शुभ्रवर्ण वाला नागमन्दिर देखा है।
फलस्वरूप तुम्हारा पुत्र अपने उज्ज्वल यश के कारण देवगृह के समान
विश्वप्रसिद्ध होगा। पन्द्रहवं स्वप्न में तुमने निर्मल रत्नों की राशि देखी है। फलस्वरूप तुम्हारा
पुत्र, अनन्त निर्मलगुणराशि से शोभायमान होगा। सोलहवें स्वप्न में तुमने-घूमरहित अग्नि का समूह देखा है । यह स्वप्न इस बात
का सूचक है कि तुम्हारा पुत्र दारुण परिपाक वाले कर्मसमूह को विनष्ट करके निर्मल अात्मस्वरूप को प्राप्त करेगा और सर्वोत्तम ज्ञान को पाएगा। इस प्रकार तुम्हारा पुत्र तीनों लोकों का स्वामी तीथंकर
होगा।
उत्पन्न होने वाले अपने पुत्र में राजा द्वारा बताये गये संभावित लक्षणों को सुनकर रानी प्रियकारिणी प्रेमविभोर हो गई। तीर्थकर के गर्भावतरण को जानकर देवताओं ने भी पाकर उस सुन्दरी रानी की वन्दना की।
पंचम सर्ग भगवान् महावीर के गर्भावतरण के पश्चात् श्री, ह्री प्रादि देवियां वहाँ प्राई। राजा सिद्धार्थ ने उनका यथोचित सम्मान किया। तत्पश्चात उनके पागमन का कारण पूछा। राजा के पूछने पर देवियों ने बता" कि महारानी प्रियकारिणी के गर्भ में जिनेन्द्र तीर्थकर भगवान् का अवतार : । प्रतएव इन्द्र के पादेश से तीर्थकर की पूज्य माता की सेवा करने वे लोग भाई हैं । प्रतएव उनको उस पुण्य-कार्य को अनुमति मिले ।
१. दाणे लामे भोगे परिभोग : . रएय सम्मते । _णव केवल तपीओं दंसण-गाणं चरित्ते य ॥'
-धवला १।११ (दान, लाभ, भोग, परिभोग, वीर्य, सम्यक्त्व, दर्शन, ज्ञान और चारित्र-ये नव लब्धियां हैं, जो केवल नान प्राप्त करने पर पुरुष को प्राप्त होती है।)