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________________ महाकवि ज्ञानसागर के संस्कृत-काव्य ग्रन्थों के संक्षिप्त कथासार २७ की प्राप्ति कर ली। उसने दंगम्बरी दीक्षा भी धारण कर ली। अन्त में उसने उच्चपद की प्राप्ति कर ली। ___ सम्राट भरत की प्रधानमहिषी सुभद्रा के समझाने पर सुलोचना ने भी ब्राह्मी नाम की मार्या के समक्ष दीक्षा ग्रहण कर ली । तत्पश्चात् वह भी स्वर्ग में प्रग्युतेन्द्र के रूप में पहुंच गई। (ख) वीरोदय महाकाव्य का संक्षिप्त कथासार प्रथम सर्ग प्राज से ढाई हजार वर्ष पूर्व, जब बसुन्धरा हिंसा, दुराचार, स्वार्थलिप्सा भोर पाप के भार से दबी जा रही थी, बसुन्धरा के भार को हल्का करने के लिए भगवान् महावीर ने जन्म ग्रहण किया। द्वितीय सर्ग लोक-विश्रुत भारतवर्ष के छः खण्ड हैं, जिनमें आर्य-खण्ड सर्वोत्तम है । इसी पाय-खण्ड में स्वर्गापम विदेह नामक एक देश है । इस देश के सर्वश्रेष्ठ नगर का नाम कुण्डनपुर है, जो पहले अत्यन्त वैभवशाली था। - तृतीय सर्ग __उस कुण्डनपुर नामक नगर में राजा सिदार्थ शासन करता था। उसने अपने बल से अनेक राजामों को अपने अधीन कर लिया था। ये सभी अधीनस्थ राजा अपने मुकुटमणियों की प्रभा से उसके चरण-कमलों को सुशोभित करते थे । वह राजा सौन्दर्य, धैर्य, स्वास्थ्य, गाम्भीर्य, उदारता, प्रजावत्सलता, विद्या प्रादि का निधान था। उसे चारों पुरुषार्थों का ज्ञान था। परमकीर्तिमान्, परमवैभवशाली उस राजा का सम्पूर्ण ध्यान राज्य को समुन्नति पर केन्द्रित था। राजा सिद्धार्थ की पत्नी का नाम प्रियकारिणी था। अनुपम सुन्दरी वह राबमहिषी, परम अनुरागमयी मोर पतिमार्गानुगामिनी थी। वह बया मोर क्षमा से परिपूर्ण हृदयवाली, शान्तस्वभावा, लज्जाशीला, परमदानशीला और मनोविनोदप्रिया थी। परमसम्पत्तिशालिता, मंजुभाषिता, समदर्शिता, कोमलता आदि सभी गुण उस रानी के संग से शोभा पाते थे। राज्य के लिए कल्याणकारिणो, उस दूरदशिनी, लोकाभिरामा ने अपने अप्रतिम गुणों से राजा सिद्धार्थ के हृदय में प्रचल स्थान पा लिया था। रानी-राजा परस्पर प्रत्यधिक प्रेम करते थे। इस प्रकार परस्पर प्रेममय व्यवहार करते हुये उनका समय सानन्द बीत रहा था। चतुर्थ सर्ग ग्रीष्म ऋतु के संताप से धरा को मुक्त करने वाली पावस ऋतु का जब पानन्ददायक मागमन हुमा, तब आषाढ़ मास की षष्ठी तिथि को भगवान महावीर ने रानी प्रियकारिणी के गर्भ में प्रवेश किया।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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