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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन
सुमोचना भी जयकुमार की प्रतीक्षा कर रही थी। पति को संकट में फंसा हमा देखकर उसको बचाने की इच्छा से बह जल में उतर गई । जल में उत्तर कर उसने हृदय से प्रार्थना की । उसके शील के तेज से गंगा का जम कम हो गया; और मछली ने जयकुमार को छोड़ दिया। सतीशिरोमणि सुलोचना के सतीत्व से प्रभावित नदी के किनारे पर उपस्थित गंगा नाम की देवी ने सुलोचना की दिव्यवस्त्राभूषणों से पूजा की । यह देख कर जयकुमार प्रत्यधिक विस्मित हुआ। जयकुमार की जिज्ञासा को शान्त करती हुई गंगादेवी ने बताया कि वह उनकी पूर्वजन्म की दासी है । सपिणी के काटने से देवी का जन्म प्राप्त किया है । प्रापसे प्राप्त पदार्थों से ही उसने उनका सत्कार किया है। यह जो मछली थी, पहले सपिणी थी; फिर कालीदेवी हुई । पूर्वजन्म के क्रोध के कारण यह जयकुमार के समक्ष माई थी। जयकुमार ने प्रीतिपूर्ण वचनों से गंगादेवी को विदा किया। सुलोचना ने जयकुमार की पूजा की।
एकविंशतितम सर्ग जयकुमार की प्राज्ञा पाकर उसके सैनिकों ने हस्तिनापुर जाने की तैयारी कर ली। जयकुमार ने रथ पर प्रारूढ़ होकर सुलोचना के साथ प्रस्थान किया। मार्गस्थित श्यों के वर्णन से सुलोचना का मनोरञ्जन करते हुए वह एक वन में पहुँचे । भीलों के मुखिया जयकुमार के लिए भेंट में गजमुक्ता, फल, पुष्पादि लाए । भीलों को पुत्रियों के सौन्दर्य को देखकर जयकुमार ने प्रसन्नता का अनुभव किया। सुलोचना गोपों की वस्ती देख कर प्रसन्न हो रही थी। गोप-गोपियों ने दही, दूष एवं मादर से जयकुमार एवं सुलोचना को प्रसन्न किया। जयकुमार ने कुशलवार्ता पूछने के पश्चात् प्रेमपूर्वक उन सबसे विदा ली।
गोपों की वस्ती से निकल कर जयकुमार ने पुनः यात्रा प्रारम्भ की। हस्तिनापुर पहुंचने पर जयकुमार और सुलोचना का मन्त्रियों ने स्वागत किया। प्रजावगं ने भी अपने राजा का सम्मान किया; नगर की स्त्रियां नववधू का मुख देखने की लालसा से राजमहल में पहुँच गई। उन्होंने सुलोचना का सौन्दर्य देखकर हर्ष का अनुभव किया । जयकुमार ने हेमाङ्गद इत्यादि के सामने सुलोचना के मस्तक पर पट्ट बांध कर उसे 'प्रधानमहिषी' घोषित कर दिया। जयकुमार के इस व्यवहार की हेमाङ्गद इत्यादि ने मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की जयकुमार ने हास. परिहास सहित उनके साथ बहुत समय व्यतीत किया । रत्न, पाभूषण इत्यादि देकर उन्हें विदा किया । जयकुमार को प्रणाम करके वे सब हस्तिनापुर से निकल पड़े। काशी पहुँचकर उन्होंने अपने पिता को प्रणाम किया और अपनी बहिन पोर बहनोई का सारा वृत्तान्त सुनाया । पुत्री के सुख समृद्धि से परिपूर्ण वृत्तान्त को जानकर काशीनरेश प्रकम्पन प्रात्मकल्याणमार्ग की भोर अग्रसर हुये।