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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काग्य -एक अध्ययन षष्ठ-सगं ___ जब सुलोचना सभाभवन में पहुँचो, तो राजामों के हृदय अन्तर्द्वन्द्व से परिपूर्ण हो गये । सुनोचना विद्या नाम की परिचारिका के साथ कंचुकी के द्वारा बताये गये मार्ग पर चलने लगी। इसके बाद विद्यादेवी ने सुलोचना को आकाशचारी विद्याधगें पोर भूमिचारी राजामों को दिखाया। सर्वप्रथम विद्यादेवी ने सुनमि और विनमि- इन दो राजानों का परिचय दिया। विद्याधर राजामों में सुलोचना की रुचि न देख कर विद्यादेवी ने पृथ्वी के राजामों का परिचय दिया। उसने क्रमशः भरत के पुत्र प्रकंकीति तथा कलिंग, कांची, काबुल, अंग, वंग, सिन्धु, काश्मीर, कर्णाटक, मालव, कैरव प्रादि देशों से पाये हुये राजामों के गुणों का विस्तार से वर्णन किया। सुलोचना जयकुमार के पास पहुंची। विद्यादेवी ने सुलोचना का मन जयकुमार के अनुकूल पाया तो उसने विस्तारपूर्वक उसके गुणों का वर्णन करना प्रारम्भ कर दिया। विद्यादेवी से प्रेरित होकर युद्ध में मेघ को जीतने के कारण मेघेश्वर की उपाधि पाने वाले सम्राट् भारत के सेनापति और सोमदेव के पुत्र जयकुमार पर अनुरक्त सुलोचना ने उसके गले में जयमाल डाल दो। उसी समय हर्पसूचक नगाड़े जोर-जोर से बजने लगे । जयकुमार का मुख कान्तियुक्त हो गया; पर अन्य राजाओं के मुख मण्डल म्लान हो गये । सप्तम सर्ग प्रकीति के सेवक दुर्मर्षण को यह स्वयंवर-समारोह अच्छा नहीं लगा। जयकुमार के वरण को उसने काशीनरेश की पूर्वनियोजित योजना समझा। उसने प्रर्ककोति से कहा कि चक्रवर्ती के पुत्र को छोड़ कर सुलोचना ने सोमदेव के पुत्र जयकुमार का वरण किया है। जयकुमार जैसे तो आपके कितने ही सेवक होंगे । फिर कुल की उपेक्षा भी ठीक नहीं । दुर्मर्षण के वचनों से उत्तेजित अर्ककोनि काशीनरेश पोर जयकुमार दोनों को ही मारने के लिए तैयार हो गया। उसने युद्ध के माध्यम से जयकुमार को नीचा दिखाने की ठान ली। परन्तु अनवद्यमति नाम के मंत्री ने समझाया कि काशीनरेश (मकम्पन) और जयकुमार हमारे अधीनस्थ राजा हैं; जयकुमार की सहायता से ही सम्राट भरत ने दिग्विजय करके चक्रवर्ती सम्राट् पद की प्राप्ति की है, इसलिए वह तुम्हारे पिता का स्नेहभाजन है । इतना ही नहीं, वरन् महाराज प्रकम्पन तो पापके पिता के भी पूज्य हैं। उनसे युद्ध करना गुरुद्रोह होगा। किन्तु प्रकीति पर अनवद्यमति के वचनों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। प्रकीर्ति के क्रोध का समाचार महाराज प्रकम्पन के पास भी पहुंचा। मंत्रियों से सलाह करके उन्होंने एक दूत मककीर्ति के पास भेजा। किन्तु दूत के वचन सुन कर भी प्रकीर्ति युद्ध से विरत नहीं हुमा । दूत ने जब महाराज प्रकम्पन को मर्ककीर्ति का समाचार दिया, तब प्रकम्पन अत्यधिक चिन्तित हुए । महाराज
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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